छवि धूमिल करता है बौद्ध परिपथ के किनारे का कूड़ा
बलरामपुर : ऑनलाइन स्टेट्स वाले इस दौर में भी स्वच्छता के प्रति लोग जागरूक नहीं है। सार्वजनिक स्थल पर
बलरामपुर : ऑनलाइन स्टेट्स वाले इस दौर में भी स्वच्छता के प्रति लोग जागरूक नहीं है। सार्वजनिक स्थल पर सफाई रखने के लिए सभ्य समाज को स्वच्छता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। एक साल से चल रहे स्वच्छता अभियान का असर सार्वजनिक स्थलों पर कम ही दिखता है। सड़क के किनारे कूड़ा एकत्र करने का सिलसिला अभी थमा नहीं है। बौद्ध परिपथ पर जिला मेमोरियल चिकित्सालय के सामने सड़क किनारे कूड़े का ढ़ेर लगा है। कूड़ा उठाने के नाम पर उसी ढे़र में आग लगा दी जाती है। कूड़े के ढ़ेर से उठने वाला धुआं राहगीरों के लिए परेशानी का सबब बनता है। कूड़े के ढे़र को जलाने से पूरा वातावरण दूषित होता है। अस्पताल के सामने लगे कूड़े के ढ़ेर में अस्पताली कचरा भी रहता है। इससे संक्रमण फैलने का भी खतरा रहता है। इसके बावजूद भी सड़क किनारे कूड़ा एकत्र करने से नगर पालिका प्रशासन बाज नहीं आ रहा है। बौद्ध परिपथ के किनारे एकत्र कूड़ा बौद्ध तीर्थ यात्रियों पर गलत छाप छोड़ती है। नगर के प्रमुख मार्गो तुलसीपुर पर पंजाब नेशनल बैंक के सामने, चुंगीनाका, झारखंडी रेलवे स्टेशन, कचेहरी के निकट, गोंडा मार्ग व उतरौला मार्ग के किनारे कूड़ा का ढ़ेर लगा रहता है। नगर से निकलने वाला कूड़ा निस्तारण करने के लिए नगर पालिका के पास कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। मोहल्लों से कूड़ा एकत्र कर उसे शहर से बाहर सड़क के किनारे ही फेंका जाता है। इस व्यवस्था से गंदगी बिखरी रहती है। इसे तत्काल बंद करने की आवश्यकता है।
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-जरूरी है इस अभियान को स्वयं लोग अपनाएं
शासकीय अधिवक्ता अंबिकेश्वर मिश्र कहते हैं कि स्वच्छता के लिए किसी पर दबाव नहीं डाला जा सकता है। सफाई के लिए स्वयं पहल करनी चाहिए। अभियान चलाया जाना ठीक है, लेकिन उसका सार्थक प्रयास होना चाहिए। प्राय : अभियान में लोग फोटो खिंचाने तक ही जुड़ते हैं। अगले दिन वे भूल जाते हैं कि फोटो किस कार्य के लिए खिंचाई है। अभियान से जुड़ने के लिए दिल से लगने की आवश्यकता है तभी सार्वजनिक स्थलों पर सफाई दिखेगी।
शिक्षक डॉ. दिव्य दर्शन तिवारी कहते हैं कि स्कूलों में पढ़ाई की शुरूआत हाथ धुलकर भोजन करने से होती है। वही बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो सबकुछ भूल जाते हैं। सार्वजनिक स्थल पर कूड़ा नहीं फेंकना चाहिए यह सब जानते हैं लेकिन इसके बाद भी लोग गंदगी करते हैं। सभ्य समाज को घर के बाहर सफाई रखने के लिए अपनी झिझक तोड़नी होगी। साथ ही व्यवस्था को लेकर शोर मचाने के बजाय व्यवस्था को सहयोग करने की परंपरा विकसित करनी होगी। ऐसा होने से ही घर और बाहर दोनों साफ रहेगा।
सेवानिवृत्त शिक्षक देवता प्रसाद तिवारी कहते हैं कि अभी अमेरिका से अपने बेटों से मिलकर लौटा हूं। वहां के सार्वजनिक स्थल घर से भी अधिक सफाई है। लोगों में कूड़ा सड़क पर न फेंकने की सनक है। यदि भूल से कोई डाल देता है तो उसे दूसरा साफ कर देता है। यही संस्कार हम सभी को अपनाने की जरूरत है। घर की सफाई जिस तन्मयता से करते हैं। उसी लगन से घर के बाहर की सफाई करने की आवश्यकता है। सेवानिवृत्त होने के बाद भी स्कूलों व कार्यक्रमों में स्वच्छता का पाठ अवश्य पढ़ता हूं। इससे होने वाले लाभ को भी बताया जाता है।
डॉ. दिनेश कुमार मौर्य कहते हैं कि स्वस्थ्य रहने के लिए स्वच्छता जरूरी है। स्वच्छता को अपनाने वाले लोग बहुत कम अस्पताल जाते हैं। इसलिए घर से बाहर तक सफाई पर अवश्य ध्यान दें। सार्वजनिक स्थल की सफाई पर सबकी नजर जाती है। इसलिए सार्वजनिक स्थलों की सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। आबादी के हिसाब से संसाधन कम है। सीमित संसाधन से सभी की आवश्यकता नहीं पूरी की जा सकती है। यह तभी संभव है कि जब सभी लोग स्वच्छता को लेकर स्वयं सजग रहे और दूसरों को भी रखे।