जूठे प्लेट व गिलासों में उलझा 'बचपन'
बलरामपुर : जिस समय देश आजादी के 66वें गणतंत्र दिवस के जश्न में डूबा अपने गौरव व शक्ति का प्रदर्शन कर
बलरामपुर : जिस समय देश आजादी के 66वें गणतंत्र दिवस के जश्न में डूबा अपने गौरव व शक्ति का प्रदर्शन कर इतरा रहा था। ठीक उसी समय कई बचपन नाली और जूठे प्लेट व गिलास में अपना भविष्य तलाश रहा था।
जी हां, विश्व के दूसरे सबसे बड़े लोकतंत्र ने भले ही आजादी के 66 साल पूरे कर लिए हो लेकिन यह दृश्य देश का स्याह पक्ष भी पेश कर रहा है। देश के स्याह पक्ष के इस पहलू की हकीकत के बारे में समाज के विभिन्न वर्गो का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों ने अपनी-अपनी राय रखी। किसान रामचंदर वर्मा ने कहा कि सरकार ने भले ही शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू कर दिया हो लेकिन बिना समाज व अभिभावक को बिना जागरूक किए हर बच्चे को स्कूल नहीं भेजा जा सकता है। सरकारें कानून बनाकर अपना पीठ तो थपथपा लेती हैं पर जमीनी स्तर पर उसे उतारने के लिए गंभीरता नहीं दिखातीं। डॉ. सुभाष शर्मा, दिनेश जायसवाल का कहना है कि लोगों को डिग्री का मतलब नौकरी ही समझ आता है और गरीब परिवारों के लोग इसे अपने पहुंच से परे मानकर नौनिहालों को ऐसे कामों में लगा देते हैं। एडवोकेट मनीष पांडेय ने भारत के शिक्षा प्रणाली को बदलने की वकालत करते हुए कहा कि जब तक प्राथमिक शिक्षा के स्तर से ही पढ़ाई को तकनीकी शिक्षा से जोड़कर बदलाव नहीं किया जाएगा। तब देश का यह स्याह पक्ष उजला नहीं होगा। व्यवसायी रमेंद्र गुप्त का कहना है कि शिक्षा के गारंटी के साथ शिक्षित रोजगार गारंटी जैसा कानून भी बनाने की जरूरत है। साथ ही कई विषयों की शिक्षा देने के बजाय जिस विषय में बच्चा तेज हो उसी विषय में उसे आगे बढ़ाकर विषय विशेषज्ञ बनाया जाए। तमाम गरीब परिवार ऐसे भी है तो बढ़े बस्ते के बोझ से बेहतर काम को बोझ अपने बच्चों को देना बेहतर समझते हैं।
बच्चों से कार्य करना अनुचित है। यह दंडनीय है। समय-समय पर अभियान चलाकर ऐसे बच्चों को मुक्त कराया जाता है। दोषियों पर कार्रवाई की जाती है। साथ ही उनके पढ़ने के लिए बाल श्रमिक स्कूलों में भेजा जाता है।
-कौशलेंद्र मिश्रा
बाल संरक्षण अधिकारी, बलरामपुर