एक अनजान भय अब भी कायम
जयप्रकाशनगर (बलिया) : अब बाढ़ का पानी लगभग गांवों से निकल चुका है। सड़कों पर आवागमन भी बहाल हो गई
जयप्रकाशनगर (बलिया) : अब बाढ़ का पानी लगभग गांवों से निकल चुका है। सड़कों पर आवागमन भी
बहाल हो गई है। घरों में कीचड़ है। उसी में लोग अपने सामानों को सुव्?यवस्थित करने में लगे हैं। पशुओं को बांधने के लिए, अभी भी परेशानी है। लोग तेजी से घर वापस हो रहे हैं, ¨कतु उनका डर अभी समाप्त नहीं हुआ है। उन्हें डर है कि यह बाढ़ फिर आएगा। तबाही भी फिर मचेगी। लोग मानते हैं कि बाढ़ का समय दशहरे तक होता है। इसलिए सब अभी भी बाढ़ से निबटने की सारी तैयारियां, उसी रूप में रखना चाहते हैं।
इन सब के बीच सबसे अहम है गवंई एनडीआरएफ की वह जुगाड़ बोट। एक एनडीआरएफ बोट वह जो, हर सुविधा से लैस होती है। बचाव का जैकेट, मशीन से चलने वाली बचाव वोट। हर खतरे से सामना करने का समान, उनके पास उपलब्ध रहता है। वहीं एक एनडीआरएफ गांव की मिट्टी पर भी है। उसके पास न तो मशीन से चलने वाली बोट है और न बचाव का जैकेट। वह खुद के हांथों ही घरेलू जुगाड़ पर अपनी बोट खड़ा कर, नदी की धाराओं से खेलता हुआ, बाढ़ के पानी के बीचो-बीच निर्भय होकर सफर करता है। आप सोच में पड़ गए होंगे कि यह कौन सा एनडीआरएफ है। तो यह है गांव का देशी एनडीआरएफ, जिसके पास है, खुद से निर्मित जुगाड़ वोट। इस जुगाड़ वोट की बनावट में कुछ ज्यादा तकनीक की भी जरूरत नहीं है। घर के लोग खुद से ही यह वोट तैयार कर लेते हैं । इसके लिए चारपहिया वाहन के दो या एक टयूब की जरूरत है। उस टयूब में हवा भर कर, उसके ऊपर बांस का चाली डालकर, रस्सी से मजबूती से बांध देते हैं, और उनकी गवंई वोट तैयार हो जाती है। इस गवंई वोट पर आदमी भीगता तो जरूर है, ¨कतु डूबता नहीं। जयप्रकाशनगर क्षेत्र के भगवान टोला निवासी रामाकांत यादव, कल्लू मल्लाह, आदि ने बताया कि इस पर चार लोग आराम से आवागमन कर लेते हैं।