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धुआं -धुआं जिनकी ¨जदगी, धुआं- धुआं जिनके ख्वाब हैं

राकेश पाण्डेय ---------------- बलिया :'भिरगू' महाराज की जय का जयकारा बोलता बलिया आज उस पल का

By Edited By: Published: Sat, 30 Apr 2016 07:20 PM (IST)Updated: Sat, 30 Apr 2016 07:20 PM (IST)
धुआं -धुआं जिनकी ¨जदगी, धुआं- धुआं जिनके ख्वाब हैं

राकेश पाण्डेय

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बलिया :'भिरगू' महाराज की जय का जयकारा बोलता बलिया आज उस पल का साक्षी बनने जा रहा है जब वक्त करवट बदलते हुए एक झटके में पांच करोड़ परिवारों को धुएं के उस गुलामी से आजाद कर देगा जिसके कोहरे से न जाने कितनी पीढि़यों की ¨जदगी और सपने धुआं धुआं हो गए हैं। अपने अंदर सामाजिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिकता समेटे हुए महर्षि भृगु की इस पावन स्थली ने हमेशा परिवर्तन के नए आयाम जोड़े हैं।

यह पहली बार नहीं है जब बलिया की बागी धरती से आजादी का शंखनाद हो रहा है। 19 अगस्त 1942 को ब्रिटिश जेल तोड़कर क्रांतिकारियों ने चित्तू पांडेय के नेतृत्व में न सिर्फ कुछ दिनों के लिए बलिया को आजाद करा लिया था बल्कि उस पूरे समय में क्रांतिकारी चित्तू पांडेय ने बतौर कलेक्टर बलिया की जनता को न्याय दिया।

ऐसा लगता है कि बलिया की माटी के इसी क्रांतिकारी तेवर को भांपते हुए प्रधानमंत्री ने उज्ज्वला योजना का शुभारंभ यहां से करने का निर्णय लिया है। उज्ज्वला योजना के जरिए उन करोड़ों महिलाओं के आंसू पोंछने का संकल्प किया है जिनकी आंखें सुबह से लेकर शाम तक कोयले की अंगीठी, उपले और लकड़ी के चूल्हे जलाते लगातार बहती रहती हैं।

विकास की वैतरणी में तैर रहे शहरी लोग भले ही खाना बनाने के इन साधनों को प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कोसते हों लेकिन अंगीठी और चूल्हे में ¨जदगी स्वाहा करने की मजबूरी को पहली बार किसी सरकार ने समझा है। कुछ कदम घुटन की ¨जदगी से दूर खुली हवा की ओर बढ़ाए हैं। प्रदूषण के खिलाफ गला फाड़ने वालों को इस बात का इल्म भी नहीं है कि अंगीठी और चूल्हे शौक नहीं मजबूरी हैं। यह करोड़ों घरों के लिए मौत का कहर भी है जिसमें सिमटी एक ¨चगारी उनके पुआल तले कच्चे घर को राख कर देती है। ..और ¨जदगी फिर से सड़क पर आ जाती है।

केंद्र सरकार ने इस योजना के तहत उस परदे को हटाकर उस जीवन को देखने की कोशिश की है जो इन चूल्हों को जलाए रखने की कोशिश में फूंक मारते मारते दमा, टीबी, कैंसर और अंधेपन की शिकार हो जाती हैं। घर-घर शौचालय के बाद उज्ज्वला दूसरी एक ऐसी योजना है जो असंख्य महिलाओं को एक खुशहाल ¨जदगी का मालिक बनाएगी जिन्हें पूर्वांचल के बा¨शदे बडे़ ही प्यार से 'मलकिन' कहा करते हैं। चूल्हे के धुएं से काले पड़ चुके अतीत को उज्ज्वल भविष्य में ले जाती यह योजना उन बेबस और लाचार आंखों में सुनहरे सपने भरने की कवायद है जिन आंखों ने सपने देखने भी छोड़ दिए थे।

हक और हकूक और अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली इस बागी धरती का लोगों ने भले ही विकास न किया हो लेकिन इसने इस राष्ट्र को ऐसी तमाम विभूतियां दी हैं जिन्होंने इस देश में न सिर्फ विकास, समता और समानता के सपने दिखाए बल्कि उनके लिए डटकर काम भी किया। लोकनायक जयप्रकाश, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र, गौरीशंकर राय जैसे न जाने कितने कद्दावर शख्सियतें बलिया की देन हैं जिन्होंने फक्कड़ मस्त ¨जदगी गुजारते हुए इस देश को विकास व समृद्धि के पायदानों पर चढ़ाया।

वैसे तो बागी बलिया के सौर मंडल में महर्षि दुर्वासा, पराशर, जमदग्नि, चंद्रशेखर, जनेश्वर व गौरीशंकर जैसे अनेकों तारे हैं लेकिन उज्ज्वला योजना का शुभारंभ करने के लिए उस धरती से बेहतर स्थल क्या हो सकता है जो भृगु महाराज की छत्रछाया में पल रही है।

यहां लोगों को यह पूरा विश्वास है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस योजना का शुभारंभ कर रहे होंगे तो सप्तर्षियों में से एक महर्षि भृगु न सिर्फ बलिया को वात्सल्य भरी निगाहों से निहार रहे होंगे बल्कि उन करोड़ों परिवारों को भी आशीष दे रहे होंगे जो इस योजना से जुड़े हैं।

बलिया बेलौस है, बेबाक है, ¨बदास है, बलिया वासियों में प्रेम है, बातों में मिठास है। बाहरी दुनिया की सोच से इतर बलिया को यहां होने वाले परिवर्तन का अहसास है। उसे इस बात का गर्व है कि एक प्रधानमंत्री ने आम जनता की ¨जदगी बदल देने वाली योजना की शुरुआत के लिए उस दूसरे प्रधानमंत्री रहे शख्स के घर को चुना है जो भारतीय राजनीति में त्याग, समर्पण और जुझारूपन की मिसाल थे।


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