लोकरस प्रदर्शनी में जीवंत हुई यादें
बलिया : अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचा कर रखने तथा उसे नई पीढ़ी से रूबरू कराने का सर्वोत्तम माध्यम लो
बलिया : अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचा कर रखने तथा उसे नई पीढ़ी से रूबरू कराने का सर्वोत्तम माध्यम लोक प्रदर्शनी है। निश्चित रूप से लोकरस प्रदर्शनी में जिन चीजों को स्थान दिया गया है उसे देख कर हमारी भूली बिसरी यादें जीवंत हो उठी हैं। यह बातें संत रामलक्षन दास ने कही। वह रविवार को टाउन हाल में आयोजित लोकरस कार्यक्रम में प्रदर्शनी का उद्घाटन करने के बाद उमड़े जन सैलाब को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम के संरक्षक कृष्ण मोहन श्रीवास्तव ने सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था पहल के कार्यकर्ताओं को इस बात के लिए बधाई दी कि उन्होंने गांव से जुड़ी चीजों को प्रदर्शनी के माध्यम से शहर के लोगों को परिचित कराया। इस दौरान नम्रता द्विवेदी की लोक विधा पर आधारित चित्र प्रदर्शनी के अलावा ओखल, मूसल, जुआठि, जांत, अखाड़ा, कुंआ, ढेकुलि, पीड़िया आदि का भी प्रदर्शन किया गया। इसे देखने के लिए लोगों का हुजूम सुबह से ही टाउन हाल में जुट गया था। दोपहर में लोकगीत गायकों ने अपनी मिट्टी से जुड़े लोकगीतों की प्रस्तुति कर कार्यक्रम को ऊंचाई दी। लोकगीत गायक बंटी वर्मा ने 'विदेशिया' व खेती-किसानी से संबंधित गीत गाकर वाहवाही लूटी। राकेश बब्लू, सोनू लाल यादव, सुरभि सिंह, काजल उपाध्याय, वीणा श्रीवास्तव आदि ने भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा। कार्यक्रम के संयोजक शैलेंद्र मिश्र ने आभार जताया। इस मौके पर मुकेश श्रीवास्तव, मोहन जी श्रीवास्तव, अशोक, आनंद चौहान, लकी शुक्ल, आशुतोष, राजीव राज आदि मौजूद थे।