Move to Jagran APP

प्रदेश के सबसे बड़े वेटलैंड की हालत बदत्तर

बहराइच : सुप्रीमकोर्ट का आदेश। शासन की मंशा। इसके बावजूद भी बदइंतजामी और दायित्व के प्रति लापरवाही न

By Edited By: Published: Sun, 22 May 2016 12:17 AM (IST)Updated: Sun, 22 May 2016 12:17 AM (IST)
प्रदेश के सबसे बड़े वेटलैंड की हालत बदत्तर

बहराइच : सुप्रीमकोर्ट का आदेश। शासन की मंशा। इसके बावजूद भी बदइंतजामी और दायित्व के प्रति लापरवाही ने प्रदेश के सबसे बड़े वेटलैंड बघेल तालाब को गुजरे वक्त की तुलना में और बदत्तर शक्ल दे दी है। अवर्षण और अतिक्रमण के चलते बड़े जलाशय पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। कभी विदेशी पक्षियों से गुलजार रहने वाले इस तालाब की छटा निहारने के लिए पर्यटकों की भीड़ रहती थी। आज बीते दिनों की बात हो चली है। तालाब में कंचन पानी नहीं अब आवारा पशुओं के चहलकदमी का नजारा बन गया है।

loksabha election banner

गोंडा-बहराइच राजमार्ग से चार किलोमीटर दक्षिण में स्थित बघेल तालाब की गणना प्रदेश के सबसे बड़े वेटलैंड के रूप में होती है। लगभग 20 किलोमीटर व्यास व 50 किलोमीटर से अधिक की परिधि में फैली झील में बरसात के दिनों में औसतन 1177 मिली मीटर तक जलराशि फैली रहती है। पर्यावरण विशेषज्ञ पूर्व प्रवक्ता परमेश्वर ¨सह के अनुसार बघेल को जैव विविधता का केंद्र भी माना जाता है। यहां न केवल जलीय जीव जंतु बल्कि सुदूर सायबेरियन पक्षियों का भी जमघट लगा करता था जो अब बीते •ामाने की बात हो चुकी है। विशाल जल संग्रह के कारण इसके तटों पर हरियाली व जंगल हुआ करते थे।

यहां उपजता है गरीबो का हरा सोना

बघेल झील के चारो ओर हर समय पानी भरा रहने से कमल गट्टा, तिन्ना धान व नरकुल का पर्याप्त भंडार रहने से आसपास के गरीबों के लिए रोजगार के अवसर निकलते थे।

आखिर कब और कैसे होगा तालाब का जीर्णोद्धार

बघेल झील के अस्तित्व को सबसे बड़ा खतरा उसकी जलीय वनस्पतियां ही बनी हुई हैं। पूरा बघेल क्षेत्र जल कुंभी शैवाल से पटता जा रहा है। सैकड़ों की संख्या में मूर्तियां व अपशिष्ट पदार्थ भी इसकी गहराई को कम करते जा रहे है। प्रमुख समाज सेवी बस स्टैंड निवासी पूर्व प्रधान संतोष गुप्त व बब्बू शर्मा का कहना है कि मत्स्य विभाग तालाब से राजस्व तो लेता है, लेकिन तालाब के संरक्षण के लिए कुछ नहीं करता है।

अवर्षण व अतिक्रमण भी रोड़ा

भूपगंज बाजार, कोट बाजार व आसपास के क्षेत्रों का बरसात का जल विभिन्न नालों से होता हुआ बघेल में एकत्र होता था। इसके अलावा बबया पुल, जमुवॉर नाला व टेढ़ी नदी के माध्यम से विशाल जलराशि का केंद्र भी बघेल बनता था। जल स्त्रोतों पर अतिक्रमण के चलते बघेल का जल का पर्याप्त संग्रहण भी अब नहीं होने से वर्तमान में वर्षा का जल ही बघेल का एक मात्र जल स्त्रोत है। यह कारण है कि बीते दो वर्षो की कम बारिश ने तालाब के बड़े हिस्से को खेल के मैदान में बदल दिया है। वैनी के अजीत शुक्ला, कोट बाजार के कमल निगम व शिक्षक गोपाल जी शुक्ल इन सबका कारण प्रशासनिक उपेक्षा को मानते हैं।

जागरुकता से बच सकता है वेट लैंड का अस्तित्व

शिक्षक आलोक शुक्ला, दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष राम प्रसाद शर्मा, प्रधान रूकनापुर प्रतिनिधि विनोद कुमार ¨सह, नूरपुर फिरोज खान तटीय ग्राम ककरहा कुटी के राम नरेश का कहना है कि यदि प्रतिवर्ष तालाब का सिल्ट व जलकुंभी की सफाई होती तो स्थित तालाब के अस्तित्व खोने की आती।

नहीं रह गया कंचन पानी

बताते है कि जाड़े में आने वाले सुदूर देशो के पक्षियों के शिकार का नायाब तरीका निकालते हुए पानी में जहरीली दवाई छोड़ना शुरु कर दिया है। इससे झील का पानी स्वच्छ दिखने के बावजूद जहरीला होने से पीने योग्य नहीं रह गया है।

जलापूर्ति का बन सकता है बड़ा स्त्रोत

क्षेत्र वासियो का मानना है कि भोपाल शहर के दोनों तालाबो की तर्ज पर बघेल में भी इलाके को जलापूर्ति करने की संभावना से जोड़ा जा सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.