मलमास में होता है विशेष जलाभिषेक
बहराइच : पयागपुर क्षेत्र में गोंडा-बहराइच राजमार्ग से मात्र तीन किलोमीटर दूर स्थित बाबा बागेश्वरनाथ
बहराइच : पयागपुर क्षेत्र में गोंडा-बहराइच राजमार्ग से मात्र तीन किलोमीटर दूर स्थित बाबा बागेश्वरनाथ मंदिर अत्यंत प्राचीन एवं पांडव कालीन होने के कारण लाखों भक्तों की आस्था एवं श्रद्धा का केंद्र माना जाता है। पुरुषोत्तम (मलमास) मास होने के कारण प्रात:काल से ही जलाभिषेक करने का सिलसिला शुरू हो जाता है, जो देर शाम तक अनवरत चलता रहता है। मंदिर की बनावट, नक्काशी और निर्माण में प्रयुक्त लखौरी ईंटों के प्रयोग का कारण इसे कई सदी पूर्व का बताया जाता है।
बताते हैं कि अज्ञातवास के दौरान पांडव अवध के घने जंगलों में विचरण करते-करते इस ओर आए, जहां शिव¨लग की स्थापना उनके द्वारा की गई थी। क्षेत्र के बुजुर्ग अपने पूर्वजों के कथनों का हवाला देते हुए बताते हैं कि बागेश्वरनाथ में पांडवों द्वारा एक साथ पांच शिव¨लगों की स्थापना की थी। आज भी गर्भगृह में स्थापित शिव¨लग जमीन में कितनी गहराई तक संबंधित हैं, इस बारे में अलग-अलग विचार है। मंदिर की ऊंचाई अनुमानत: 75 फीट के आसपास है। पूरा मंदिर अष्टकोणीय है। परिक्रमा मार्ग में आठ खुले द्वार हैं। जिन पर प्राचीन नक्काशी है। बताते हैं कि कई बार मंदिर ध्वस्त हुआ। विशेषकर मुगलकाल में इसका अस्तित्व मिटाने का प्रयास हुआ, जिसे पयागपुर राजपरिवार द्वारा पुन: बनवाया गया। पुरातत्व सर्वेक्षण भी बताते हैं कि मंदिर का वर्तमान स्वरूप चार से पांच सौ वर्ष पुराना है। मंदिर के पास जिस बरगद के पेड़ के नीचे साधक जुटते थे वह लगभग एक बीघे से ऊपर क्षेत्रफल में फैला हुआ वह भी मंदिर के अत्यंत प्राचीन होने की गवाही दे रहा है। मंदिर के वर्तमान पुजारी रामशंकर भारती का कहना है कि उनकी बारह पीढि़यां मंदिर से जुड़ी हैं। भारती के अनुसार चमत्कारी संत बाबा गायब गिरि बाघ पर चढ़कर शिवजी का दर्शन करने आते थे। तभी से इस मंदिर का नाम बागेश्वरनाथ पड़ा। प्रत्येक सोमवार, शुक्रवार, सावन माह कजरी तीज और पुरुषोत्तम मास में बाबा को जलार्पण करने वालों की संख्या बढ़ने के कारण मेले जैसा माहौल रहता है। दर्शन करने आए भक्तों के अनुसार बाबा के दरबार से किसी की झोली खाली नहीं लौटती है।