फसल नुकसान के बाद मेंथा पर टिकी किसानों की उम्मीद
बहराइच : किसानों को गेहूं व गन्ना में भारी नुकसान उठाने के बाद अब मेंथा की फसल का सहारा बचा है। बेमौ
बहराइच : किसानों को गेहूं व गन्ना में भारी नुकसान उठाने के बाद अब मेंथा की फसल का सहारा बचा है। बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि ने किसानों को ऐसा रुलाया है कि रबी फसलों से लागत भी निकलने के लाले पड़े हैं। अब किसान मेंथा की फसल से बड़ी उम्मीद लगाए बैठे हैं। गेहूं कटाई के बाद किसान मेंथा की फसल की तैयारी में जुट गए हैं। कई किसान जिन्होंने पहले गेहूं काट लिया था उनकी बोई गई मेंथा की फसल में हरियाली भी दिखने लगी है।
किसानों का मानना है कि अगर यह फसल साथ दे तो गेहूं में नुकसान की कुछ हद तक भरपाई की जा सकती है। पयागपुर के गांव उधरना के ननकू मुल्ला ने चार बीघे में पिपर¨मट की पौध बैठाई है। बताते हैँ कि इस समय पिपर¨मट तेल का भाव आठ सौ से नौ सौ रुपये के बीच में है। अगर यही तेजी बनी रहती है और मौसम साथ देता है तो गेहूं में हुए नुकसान की कुछ हद तक भरपाई हो जाएगी। यहीं के सुग्रीव व सियाराम बताते हैं कि उन्होंने डेढ़ बीघा जमीन में गेहूं के बाद मेंथा लगवाया है। अब तक फसल अच्छी है। इससे अच्छा मुनाफा प्राप्त हो जाएगा। गजाधरपुर के किसान रईस खां बताते हैँ कि वह लगभग दस बीघे में मेंथा की खेती करते हैं। खराब मौसम के बावजूद इस फसल से अच्छा मुनाफा हो जाता है। इस बार गेहूं व अन्य फसलों में नुकसान होने के कारण और ज्यादा क्षेत्रफल में खेती करने की योजना है।
एक बीघा फसल पर पांच हजार का खर्च : किसान शिवपाल बताते हैं कि एक बीघा में चार से पांच हजार की लागत आती है। 120 दिन में मेंथा की फसल कटने लायक हो जाती है। मई से इसकी कटाई शुरू हो जाती है। तीन चार माह में मेंथा की दूसरी फसल तैयार हो जाती है। एक बीघा में 10 से 12 लीटर तेल निकलता है। जिससे आठ से दस हजार रुपये की कमाई हो जाती है।
प्लांट से भी होती है आय : मेंथा के पौधे से तेल निकालने के लिए प्लांट लगाया जाता है। बड़े ड्रम नुमा टंकी में मेंथा की फसल काटकर भर दी जाती है। ढक्कन बंद कर इसे उबाला जाता है। निकलने वाली भाप को जल से दूसरे टैंक में ठंडा करके द्रव रूप में भरकर प्राप्त किया जाता है। किसान मकबूल, हेमराज, लक्ष्मी धर आदि बताते हैं कि पिपर¨मट से तेल निकालने का प्लांट लगाकर भी अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है।