कंपोस्ट खाद से बढ़ाएं खेतों की उर्वरा शक्ति
कैसरगंज(बहराइच) : खेती बाड़ी की झंझावतों में मायूस किसानों के लिए जमल्दीपुर पॉवर हाउस सरीखा है। यहां
कैसरगंज(बहराइच) : खेती बाड़ी की झंझावतों में मायूस किसानों के लिए जमल्दीपुर पॉवर हाउस सरीखा है। यहां हर घर में खेती-किसानी की चर्चा शाम की चौपालों में होती है। सकारात्मक प्रतिस्पर्धा भी यहां के किसानों में देखी जा सकती है। जमल्दीपुर के किसान नाडेप विधि से कंपोस्ट खाद तैयार करते और खुद के खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ बोरियों में भर कर इसे बेचते भी हैं। यह उनके आमदनी का अतिरिक्त स्रोत साबित हो रहा है।
जमल्दीपुर के रघुराज प्रसाद वर्मा छोटी से काश्तकारी के मालिक हैं। लेकिन बेझिझक कहते हैं कि खेती हमारा पुश्तैनी व्यवसाय है। जिस तरह रसायनिक खादों का प्रयोग बढ़ा है। इससे खेतों की मिट्टी रूखी हो रही है। क्षारीय तत्वों से बचाने के लिए कंपोस्ट खाद का प्रयोग जरूरी है। वे कहते हैं कि कंपोस्ट खाद बनाने के लिए नाडेप विधि सबसे आसान है। इसमें गोबर का भी कम खर्च होता है और अधिक खाद मिल जाती है। रघुराज प्रसाद वर्मा इकलौते नहीं हैं। जमल्दीपुर के साबितराम, महिपाल सहित लगभग अधिकतर किसानों ने नाडेप विधि से कंपोस्ट तैयार करने के लिए हौज बना रखी है। यहां के किसान बताते हैं कि नाडेप विधि से कम गोबर के साथ फसल अवशेषों का मिश्रण कर 90 से 110 दिनों में बड़ी मात्रा में खाद तैयार की जा सकती है।
इनसेट : ऐसे तैयार होती है नाडेप कंपोस्ट
कैसरगंज : नाडेप कंपोस्ट बनाने के लिए थोड़े ऊंचे स्थान पर एक दस फीट लंबाई, छह फीट चौड़ाई, तीन फीट ऊंचाई का जालीदार ईटों का टैंक तैयार किया जाता है। इसके चारों दीवारों में छेद हो जाते हैं। टैंक के प्रथम दो रद्दों एवं आखिरी रद्दों में कोई छेद नहीं किया जाता है। दीवारों की जुड़ाई नौ इंच मोटाई में कराई जाती है ताकि टैंक कम से कम पांच वर्ष तक सुरक्षित रहे। टैंक भरने से पहले टैंक के चारों दीवारों के अंदर से एवं तली को गाय के गोबर से लेपन कर दिया जाता है। इसी में गोबर और फसल अवशेष भर कर पानी से नम कर दिया जाता है। कम समय में सारा मिश्रण सड़कर खाद का रूप ले लेता है। कंपोस्ट की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए टैंक भरने के 60-70 दिन बाद राइजोबियम मात्रा में 35-40 लीटर पानी में घोलकर कंपोस्ट में बांस द्वारा छेद कर डाल दिया जाता है।