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फोटो-मैडम जी! नीचे कुत्ता है, काट भी सकता है

By Edited By: Published: Fri, 26 Sep 2014 11:57 PM (IST)Updated: Fri, 26 Sep 2014 11:57 PM (IST)

बहराइच : यूं तो आवारा पशुओं को लेकर पालिका प्रशासन तरह-तरह की नीतियां बनाता है और उन्हें पकड़ने के दावे भी करता है। पर शायद जिला अस्पताल की ओर उनकी नजर नहीं पड़ी। तभी तो जिला अस्पताल परिसर में आवारा पशुओं का जमावड़ा रहता है। कोई पुरसाहाल लेने वाला नहीं है। भले ही वह मरीजों को नुकसान क्यों न पहुंचा दे।

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तस्वीर गवाह है कि किस कदर मरीजों के साथ खिलवाड़ होता है। महिला अस्पताल का यह चित्र है। यहां प्रसव पीड़िता या फिर महिलाएं अपने दुधमुंहों, नवजातों को लेकर टीकाकरण के लिए आती हैं। जरा सोचिए, टीकाकरण के लिए बच्चों संग आई महिलाएं यहां बनी बेंच पर बैठी हैं। नीचे ही लाइन से आवारा कुत्ते आराम फरमा रहे हैं। गलती से महिला का पैर नीचे उतरा या फिर उन पर पड़ गया तो आगे क्या होगा, इसे बताने की जरूरत नहीं है। बच्चों को काट सकते हैं। टीकाकरण होना तो दूर एंटी रैबीज इंजेक्शन के लिए उन्हें भागमभाग करनी पड़ सकती है। यही नहीं, नवजात बच्चों को भी यह आवारा खींच कर ले जा सकते हैं। हालांकि सुरक्षा के नाम पर लोगों की तैनाती महिला अस्पताल में है। साफ सफाई के लिए स्टाफ भी तैनात है। पर आवारा पशुओं को हटाने में उन्हें तनिक भी रुचि नहीं दिखाते। यही वजह है परिसर में आवारा कुत्तों का जमावड़ा रहता है।

-दर्द अभी बाकी है..

सिहर उठता है तुलसीराम का परिवार

बहराइच : करीब डेढ़ साल पहले की बात है। फखरपुर के केशवापुर गांव के तुलसीराम को कुत्ते ने काट लिया। संसाधन नहीं थे और समय पर इलाज के लिए पैसा नहीं उपलब्ध हो सका। जब जिला अस्पताल पहुंचे तो उसका असर नहीं हुआ। नतीजा तड़प-तड़प कर तुलसीराम की मौत हो गई। दो बच्चे छोड़ वह चले गये। बेटा कन्हैया(14 वर्ष) व बेटी सविता(26 वर्ष)की है। बेटी के हाथ पीले कर चुके थे। पुत्री सविता से पूछने पर ही वह सिहर उठती हैं। कहतीं हैं भगवान न करे ऐसा किसी के साथ हो। कुत्ते को देखते ही उनका परिवार सहम जाता है। कहती हैं डेढ़ साल पहले पिता को खो चुकी हूं। उनका समय से इलाज न होने के कारण उस दर्द का एहसास आज भी है। बेटा कन्हैया कहता है कि उतनी समझ नहीं थी लेकिन अब कुत्ते का झुंड देखकर हम रास्ता बदल देते हैं।

एआरवी क्लीनिक यानी कमरा नंबर-सात

बहराइच : यूं तो प्रदेश सरकार ने जिले में एआरवी क्लीनिक खोलने के तमाम निर्देश दे रखें हैं। मानक तय कर रखें हैं। लेकिन जिला अस्पताल की एआरवी क्लीनिक को कमरा नंबर-सात के रूप में जाना जाता है। वजह साफ है मानक के अनुरूप एआरवी क्लीनिक नहीं दिखती और न ही हर वक्त वहां एंटी रैबीज इंजेक्शन लगाने वाले विशेषज्ञों की उपलब्धता ही है। समय 8 से 12 है। यानी अगर देर हुई पीड़ित को तो दूसरे दिन का इंतजार करने की मजबूरी। भले ही कुत्ता काटने का असर समय से एंटी रैबीज न लगने की वजह उस पर भारी पड़ जाए। आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि जब जिला अस्पताल के एआरवी क्लीनिक के यह हाल हैं तो सीएचसी और पीएचसी के हालात राम भरोसे ही होंगे।

एक और मजाक देखिए

बहराइच : सरकार एंटी रैबीज के लिए इंजेक्शन की सीरिंज तक खुद ही मुहैया कराती हैं, पर जिला अस्पताल में तैनात फार्मेसिस्ट कुत्ता काटने का शिकार होकर आए मरीजों और उनके परिवारीजनों से ही सीरिंज मंगवाते हैं। फखरपुर के खैरा बाजार से आए कुद्दूस पहुंचे तो बकौल श्री कुद्दूस से फरमाइश हुई। सीरिंज ले आइए। कहां से, बाजार से। वे सीरिंज दिखाते हुए कहते हैं देखिए न। सीरिंज बाहर ले ला रहा हूं। इसी तरह हनुमानपुरी कालोनी से आए अनुपम रूपानी के परिजन, गुलामअलीपुरा से आए 40 वर्षीय मनीराम, खत्रीपुरा से आए ऋषभ के परिजनों ने भी यही दुखड़ा रोया। कहना था कि अगर सीरिंज न लेकर गये तो देर हो जाएगी।


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