तबाही के शोलों को रोकने की फिक्र किसे?
बहराइच : गर्मी शुरू हुई, सो तबाही का सिलसिला शुरू हो जाता है। अग्निकांडों का ऐसा अनवरत सिलसिला शुरू होता है जो थमने का नाम नहीं लेता। जनहानि होती है। वर्षो की गाढ़ी कमाई पलक झपकते ही राख में तब्दील हो जाती है। मलाल ऐसा जो ताउम्र बना रहता है और उसकी भरपाई नहीं हो पाती है। बावजूद इसके अग्निकांडों से होने वाले नुकसान के बाद भी जनप्रतिनिधि ऐसे गंभीर मुद्दों पर संवेदनशील नहीं होते और बेखबर रहते हैं। संवेदनशीलता का आलम इसी से लगाया जा सकता है कि बहराइच से बाराबंकी के बीच 99 किलोमीटर के फासले में एक भी स्थान पर अग्निशमन केंद्र नहीं हैं। जब शोले भड़कते हैं तो उन्हें बुझाने वाला कोई नहीं होता। ग्रामीण, बच्चे और महिलाएं बाल्टी लेकर कुओं और पोखरों की ओर दौड़ते हैं। पोखर भी सूख चुके हैं। लिहाजा पर्याप्त पानी नहीं मिलता है। नतीजा चहुंओर तबाही का मंजर साफ दिखता है।
हिमालय की तलहटी में बसे इस जिले में अग्निकांड हर साल कहर बरपाता है। पूरा जिला इसकी जद में है, लेकिन यहां आग लगने पर तत्काल राहत के लिए अग्निशमन की गाड़ियां दनदना नहीं पाती हैं। वजह एक तो मार्ग खराब, दूसरे तहसील मुख्यालयों पर केंद्र की स्थापना नहीं है। लंबी लड़ाई के बाद नानपारा तहसील में ही अग्निशमन केंद्र खुल सका है पर राहत देने में नाकाफी है। संसाधन नहीं हैं। सुदूरवर्ती गांवों में जब आग के शोले लपलपाते हैं तो यहां के निवासी सिवाय बेबसी के आंसू रोने के उनके पास कुछ नहीं होता। फोन करने के बाद भी घंटों अग्निशमन गाड़ी नहीं पहुंचती और न ही जिम्मेदार। दूसरे दिन तबाही के बाद प्रशासनिक छोटे हुक्मरानों का कैंप लगता है तो कोई प्लास्टिक बांटता है तो कहीं पर मिट्टी का तेल व मामूली रकम की अहेतुक सहायता की चेक। महसी व कैसरगंज तहसील क्षेत्र के किसी भी स्थान पर अग्निशमन केंद्र नहीं है। यही हाल पयागपुर, विशेश्वरगंज, हुजूरपुर क्षेत्रों का भी है। अग्निकांड की वीभत्स घटनाओं के बाद भी जनप्रतिनिधि इस ओर नहीं चेते। राज्य की पंचायत हो या देश की। दोनों ही स्थानों पर जिम्मेदारों ने इसे प्रमुखता से नहीं उठाया। चुनाव में प्रत्याशियों की नजर में यह मुद्दा नहीं है। तभी तो कोई इसे जोरशोर से नहीं उठाता है। भोले-भाले मतदाताओं के सामने ऐसे अग्निकांडों से निपटने के लिए फिलहाल तो ऊपर वाले का ही सहारा है। कब बनेगा यह मुद्दा जो हर बार देता है तबाही और सिर्फ तबाही।