बने लहरों का निशाना, फिर भी नहीं मिला ठिकाना
बहराइच : जो उलझकर रह गई है फाइलों जाल में, गांव तक वो रोशनी आएगी कितने साल में। अदम गोंडवी की यह पंक्तियां बाढ़ व कटान से विस्थापित परिवारों के लिए सही बैठती हैं। जो पिछले कई वर्षो से तटबंध व सड़कों की पटरियों पर डेरा डाले मुफलिसी के दौर से गुजर रहे हैं। पिछले डेढ़ दशक से घाघरा की लहरें तटवर्ती गांवों को खंगाल रही है। आजीविका का साधन बनी खेती, घर-बार सब कुछ लहरों की भेंट चढ़ने के बाद दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना चुनौती सरीखा है। ऐसा नहीं कि जनप्रतिनिधि इन बेघर परिवारों की समस्या से अंजान है बावजूद इसके किसी ने भी इनकी समस्याओं को दूर करने की आवाज नहीं उठ उठाई। बाढ़ और कटान पीड़ितों की समस्याओं को उठाती संजय सिंह की रिपोर्ट..।
वर्ष 1998- 99 से लगातार चल रहा घाघरा का तांडव अभी थमा नहीं है। डेढ़ दशक से घाघरा की लहरें तटवर्ती गांवों को खंगाल रही हैं। क्रूर लहरें एक के एक गांवों को अपने आगोश में समेट रही है। तटबंध व घाघरा के च्ीच बसे 66 गांवों में मुंसारी, आशापुर, कपरवल, खरगापुर, पंडितपुरवा, संसारी, उमरिया, दरियापुरकला, दरियापुरखुर्द, चुरवलिया, अटोडर, नौबस्ता, तूलापुर सहित 14 राजस्व गांव नक्शे से गायब हो चुके है। विगत तीन वर्षो में घाघरा ने खरखटट्नपुरवा, गुलरीपुरवा, बांसगढ़ी, तारापुरवा, अरनवा, इतवारीपुरवा, कोढ़वा, पचदेवरी, कायमपुर, मुरौव्वा, मांझादरिया, पिपरी में जमकर कहर बरपाया है। राजस्व आंकड़ों के अनुसार 1627 परिवार विस्थापित हैं। अब तक कुल 120 परिवारों को ही बसाया जा चुका है। यह स्थिति तब है जब सैकड़ों परिवारों ने या तो अपने रिश्तेदारी में या सहयोगियों के यहां ठिकाना बना लिया। तहसील क्षेत्र के राजीचौराहा के बेलहा- बेहरौली तटबंध स्थित सिंगिया नसीरपुर से लेकर संगवा समदा तक हजारों परिवार तटबंध व सड़कों की पटरियों पर डेरा डाले परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। अंतहीन त्रासदी के साथ परिस्थितियों से जूझकर किसी तरह दो जून की रोटी का प्रबन्ध करने में ही लाले पड़ रहे है।