नाव की सवारी, फिर पूरी होती है जरूरत हमारी
महसी (बहराइच) : देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा का चुनाव शुरू हो गया है। लेकिन बहराइच-सीतापुर जनपद की सीमा के करीब घाघरा के कछार में बसा रामचन्दरपुरवा व रामसेवकपुरवा गांव जहां चुनाव के कोई निशान नजर नहीं आते। यहां न मुददे हैं और न ही कोई चुनावी हलचल। नदी की धार से विस्थापन की अनवरत समस्या से जूझ रहे ग्रामीणों की कहानी मात्र है। जहां हर जरूरत के लिए नाव की सवारी करनी पड़ती है। कुछ भी चाहिए तो पहले नाव से पार जाओ, सामान लाओ और फिर वापस आओ। यह उबाऊ दिनचर्या है।
इनके पास नदी के एक छोर पर सिर छिपाने के लिए फूस की मड़इया है तो दूसरे किनारे पर आजीविका का साधन बनी खेती। रोजगार के साधन की बात करना बेमानी है। नाव से नदी पार कर दिन भर खेतों में पसीना बहाना और दिन ढले वापस घर आना यहां के बाशिंदो की दिनचर्या में शामिल है।
बताते चलें कि तहसील महसी क्षेत्र का जानकीनगर गांव जो 30 वर्ष पहले आबाद था। घाघरा ने कटान शुरू की और सैकड़ों परिवारों को पलायन के लिए विवश कर दिया। अधिकांश ग्रामीणों ने नदी के दूसरे छोर पर बसे सीतापुर के गोलोक गांव में शरण ली। ठिकाना बनाया और कुछ खेती-पाती लेकर किसानी शुरू की। विगत चुनावों में सीतापुर के मतदाता के रूप में ग्राम पंचायत, विधान सभा व लोक सभा चुनावों में मतदान कर प्रत्याशियों का भाग्य तय किया। जिन्दगी की रफ्तार भी ठीक से ढर्रे पर नहीं आयी कि एक बार फिर नदी ने धारा बदली। नदी की क्रूर लहरों ने गोलोक गांव पर कहर बरपाना शुरू किया। गोलोक में बसे जानकीनगर के बाशिंदों को फिर बैरंग वापस लौटना पड़ा। बहराइच की सीमा के घाघरा स्थित कछार में रामचन्दरपुरवा व रामसेवकपुरवा नाम से गांव बस गया। रामचंदरपुरवा गांव के प्रमोद, दौलतराम, राममूरत, फौजदार, विश्राम, हरिहर, बच्चू, उत्तम, नरायन, गोकरन व रामसेवकपुरवा निवासी रामसागर, मनीराम, हीरालाल, नाथूराम, खरपत्तू, बदलू, रामलाल, गुल्लू सहित दर्जनों ऐसे परिवार हैं जो खर- फूस की मड़इया में आबाद हैं। सबसे बड़ी समस्या यहां आजीविका का साधन बनी खेती है। खेती- किसानी के लिए परिवार के साथ प्रतिदिन नाव से नदी पार कर सीतापुर के गोलोक जाना इनकी विवशता है। रामचन्दर पुरवा के बघऊ, सुरेश, बच्चू, उत्तम, हरिहर, रामचन्दर व रामसेवक पुरवा के कनकन्ने यादव कहते हैं कि खेती नदी के उस पार है। आजीविका के लिए नदी पार करना पड़ता है। 7 वर्ष पहले वह यहां आकर बसे हैं। पिछले प्रधानी चुनाव में तो गोलोक में ही मतदान किया था। पूछने पर बताया कि आगामी लोकसभा चुनाव में बहराइच जिले से पहचान पत्र के लिए फोटों खिंचवाया है। कुछ लोगों को पहचान पत्र मिल गया है। इनका कहना है कि पता नहीं कब घाघरा फिर से उजाड़ दें। फिलहाल घाघरा के कछार में बसे इन गांवों के ग्रामीणों का जीवन नदी की धारा पर निर्भर है।