बाबा शाहमल शहादत दिवस-2
बागपत : प्रथम जंग-ए-आजादी के जियालों को रोकने के लिए अंग्रेजी हुक्मरानों ने विशेष तौर पर गठित खाकी रिसाला एवं विशिष्ट फ्रांसीसी फौजियों के दल को जिम्मेदारी सौंपी थी।
ब्रिटिश हुकूमरानों ने क्रंातिकारी नेता शाहमल सिंह मावी एवं देशखाप चौधरी श्योसिंह को मार डालने के लिए वारंट जारी कर दिए थे।
17 जुलाई 1857 को क्रांति गांव बसौद जामा मस्जिद में बाबा शाहमल और उनके साथियों की सूचना पाकर अंग्रेजों ने गांव पर हमला बोल दिया और 180 ग्रामीणों को मार डाला। बाबा शाहमल सिंह वहां से निकलकर बड़का गांव के जंगलों में अपने तीन हजार साथियों के साथ जा पहुंचे। अगले ही रोज बड़का के जंगलों में हुए भीषण युद्ध में बाबा शाहमल सिंह सैंकड़ों साथियों के साथ शहीद हो गए। शाहमल सिंह की शहादत के उपरांत अंग्रेजों ने देशखाप के 84 गांवों में बाबा शाहमल सिंह के कटे सिर को भाले के नोंक पर घुमाने की कोशिश की, परंतु देशखाप चौधरी श्योसिंह के नेतृत्व में इसका विरोध हुआ।
बड़ौत के चौधरान पट्टी में स्थित देशखाप चौधरी की हवेली जला दी गई। पट्टी चौधरान को नीलाम कर दिया गया और चौधरी श्योसिंह को भी उनके क्रांतिकारी साथियों के साथ यमुना नहर के किनारे ले जाकर पत्थर के कोल्हू में पिलवा दिया गया। आज भी बड़ौत में यमुना नहर के किनारे इस कोल्हू के मौजूद अवशेष क्रांतिकारियों के साथ हुई बर्बरता की मूक गवाही दे रहे हैं।
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