जल से शांत होगा हलाहल
-शिवरात्रि को हुआ था शंकर-पार्वती का विवाह
-शिवरात्रि को मनाने की पौराणिक कथाएं प्रचलित
जागरण कार्यालय, बागपत : शिवरात्रि पर्व को मनाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इसमें सबसे प्रचलित कथा भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह से संबंधित है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती परिणय सूत्र में बंधे थे। यह भी मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने पर पूरी सृष्टि तबाह होने लगी थी। पूरी दुनिया को बचाने के लिए भगवान आशुतोष ने इसे पी लिया और अपने कंठ में रोक लिया। इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है।
कुछ ही देर में उन पर भी हलाहल का असर दिखने लगा और वे तपने लगे। ऐसे में देवताओं और राक्षसों ने उनकी गर्मी शांत करने के लिए उन पर गंगाजल चढ़ाया। धार्मिक पुस्तकों में देवताओं और राक्षसों को संयुक्त रूप से पहले कांवड़ियों का दर्जा प्राप्त है और दोनों ही भगवान शिव के परम भक्तों में गिने जाते हैं। आज भी इसी गर्मी को शांत करने के लिए शिवलिंग पर कठिन यात्रा के बाद गंगाजल चढ़ाया जाता है।
शिव व गौरी को समर्पित होता है श्रावण
ज्यातिषाचार्य राजकुमार शास्त्री ने बताया कि सावन का महीना चतुर्मास का प्रथम महीना होता है। यह महीना भगवान शिव और गौरी को समर्पित है। इस माह के प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत किया जाता है। इस व्रत में गौरी जी के पूजन का विधान है। चूंकि यह व्रत मंगलवार को किया जाता है इसलिए इसे मंगला गौरी व्रत कहते हैं। कल्याणकारी इस व्रत का जो महिला पालन करती हैं उनके घर में सदा मंगल ही होता है। यह व्रत विवाह के बाद प्रत्येक स्त्री को पांच वर्षो तक नियम से करना चाहिए। विवाह के बाद प्रथम श्रावण में पीहर और अगले चार वर्षो तक पतिगृह में यह व्रत करने का विधान है।
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