प्रकृति प्रेम के साथ हो दीपावली का उल्लास
पंकज तोमर, बड़ौत : सालभर से जिस महत्वपूर्ण त्योहार का इंतजार रहता है वह अब आने ही वाला है। बाजार, गलि
पंकज तोमर, बड़ौत : सालभर से जिस महत्वपूर्ण त्योहार का इंतजार रहता है वह अब आने ही वाला है। बाजार, गलियां-मोहल्ले, चोबारे, घर व आंगन में सजावट होने लगी है। रौनक से भरा यह त्योहार रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ मिलकर मनाने से और उल्लासमयी बन जाता है। पर, यह उल्लास पर्यावरण को शुभता प्रदान करने वाला होना चाहिए। प्रदूषण कम से कम हो, इसका ध्यान रखना हम सभी का कर्तव्य भी बनता है। दीपावली का पर्व ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहा है, वैसे ही रौनक बढ़ने लगी है। हर बार की तरह बाजारों में पटाखों व आतिशबाजी की दुकान सजने लगी हैं। जैसे ही पर्व आएगा तो दुकानें इनसे पट जाएंगी, लेकिन यह आतिशबाजी और पटाखे पर्यावरण के लिए बेहद घातक सिद्ध हो सकती है। पर्यावरण की स्वच्छता को लेकर ध्यान रखना होगा कि कम से कम प्रदूषण करने वाली आतिशबाजी और पटाखों का इस्तेमाल किया जाए। प्रकृति के प्रति यह प्रेम यदि कोई दर्शाएगा तो वह सच्चा मानव होगा।
संस्कृति और संस्कार
दीपावली केवल सजावट और धूमधाम में ही नहीं बितानी चाहिए। प्राचीन काल से परंपरा है कि पर्यावरण को बचाने के लिए ऋषि-मुनि भी पौधे रोपते थे और अपने जीवन काल तक उनकी रक्षा भी करते थे, लेकिन जमाना आधुनिक होने के साथ अब यह परंपरा विलुप्त होती जा रही है। इस बार पर्यावरण सहेजने के लिए हर व्यक्ति को कम से कम एक पौधा रोपना होगा, तभी पर्यावरण स्वच्छता का बेहतर संदेश जाएगा और फिजा स्वच्छ होगी। हालांकि आज भी कुछ स्थानों पर बुजुर्ग अपने पूर्वजों द्वारा दिए गए संस्कारों व आदर्शो पर चलकर पौधा रोपने की परंपरा को निभाते आ रहे हैं
प्रदूषण को कहें अलविदा
शहर के वरिष्ठ चिकित्सक डा. मनीष तोमर बताते हैं, पटाखे दीपावली में पर्यावरण प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण होते हैं, इनमें लेड, मैग्नीशियम, जिंक, कोडियम जैसे कई जहरीले पदार्थ होते हैं, जो पर्यावरण के साथ-साथ हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत हानिकारक होते हैं। इनमें से कई रसायन तो लंबे समय तक वातावरण में तैरते रहते हैं। पटाखों व आतिशबाजी से निकला हुआ धुंआ दमे व सांस के मरीजों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। दूसरी ओर तेज आवाज वाले पटाखे कुछ लोगों को पसंद होते हैं, लेकिन यह हजारों लोगों को परेशान कर सकता है। ध्वनि प्रदूषण की वजह से कान तक खराब होने की 60 फीसद तक आशंका बढ़ जाती है। एक सामान्य कान के लिए 60 डेसीबल तक की आवाज सही होती है, इससे अधिक तेज आवाज होने से इंसान बहरा हो सकता है। इनके अलावा जानवरों व पशुओं के कानों के लिए भी तेज आवाज बेहद घातक हो सकती है।
सेलीब्रिटी की अपील
मेरा मानना है कि हम सभी को पर्यावरण स्वच्छता को ध्यान में रखकर ही दीपावली का उल्लास मनाना चाहिए। फिजा स्वच्छ होगी तो समाज स्वस्थ होगा, इसलिए मेरी यही अपील है कि कम से कम प्रदूषण करने वाली आतिशबाजी और पटाखों का इस्तेमाल करें। अपने आसपास के लोगों को भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुक करें। - दीपाली सैनी, टीवी कलाकार।
बच्चों ने लिया संकल्प
पर्यावरण स्वच्छता के लिए आज की पीढ़ी को भी जागरुक होना पड़ेगा। इस बार मैंने संकल्प लिया है कि मैं कतई प्रदूषण करने वाले पटाखों का इस्तेमाल नहीं करूंगी।
प्रीति बालियान, छात्रा।
हम सभी बच्चों को मिलकर पर्यावरण को सहेजना होगा। मैंने तो इस बार प्रदूषण न करने का संकल्प लिया है, तो क्या आप भी पर्यावरण संरक्षण में मेरा सहयोग करेंगे।
सारा, छात्रा।
कई साल से देख रहा हूं कि दीपावली पर प्रदूषण बहुत हो जाता है, लेकिन इस बार मैं प्रदूषण को किनारे कर दीपावली मनाउंगा और दूसरों को भी इसके लिए जागरुक करूंगा।
प्रशांत शर्मा, छात्र।
अपनी फिजा को हम सभी को मिलकर स्वच्छ करना होगा। मैं संकल्प लेता हूं कि प्रदूषण वाली आतिशबाजी या पटाखों का प्रयोग नहीं करूंगा और पौधारोपण भी करूंगा।
प्रतीक, छात्र।