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'मां ने तो मुझे बचपन में ही बना दिया था दारोगा'

खेकड़ा : खेकड़ा क्षेत्र के सीओ राजवीर सिंह यूं तो अपनी मेहनत के बूते ही सीओ बने, लेकिन मां के वात्सल्य

By Edited By: Published: Wed, 06 May 2015 11:04 PM (IST)Updated: Wed, 06 May 2015 11:04 PM (IST)
'मां ने तो मुझे बचपन में ही बना दिया था दारोगा'

खेकड़ा : खेकड़ा क्षेत्र के सीओ राजवीर सिंह यूं तो अपनी मेहनत के बूते ही सीओ बने, लेकिन मां के वात्सल्य और दिली ख्वाहिश ने तो बचपन से ही दारोगा मान लिया था। उनकी मां कंदो देवी उन्हें बचपन से ही दारोगा कहकर पुकारने लगी थीं। वे बताते हैं कि मां से बड़ा इस धरती पर कोई नहीं है। वे ही साक्षात भगवान, अभिभावक और चिकित्सक हैं। वे संस्मरण सुनाते हैं कि जब वे आठ साल के थे तो एक दिन उनके माथे पर गहरी चोट लग गई। बहुत खून बहा था। उस समय घर में कोई नहीं था तो उनकी मां ने ही लिहाफ को उठाकर उनके माथे पर रख दिया था। लिहाफ खून से पूरी तरह से भीग गया था। उसके बाद भी जब खून बंद नहीं हुआ तो मां ने अपने कंघी से निकाले गए बाल जलाकर घाव में भर दिए। मात्र उसी उपचार से उसके माथे का घाव भर गया था। आज भी जब वे अपनी चोट को याद करते हैं, तो मां की याद आ जाती है। वे कहते हैं कि मां का दर्जा सबसे ऊपर होता है। वे लोगों से अपील करते हैं कि बच्चों को मां के प्रति आदर-सम्मान सीखाना चाहिए। यही नहीं, वे सभी मांओं से अपील करते हैं कि अपनी औलाद के लिए वात्सल्य में कमी न रखें। पता नहीं कब उसका प्यार ही उसकी जिंदगी बना दे। मां का प्यार और ख्याल बच्चे के लिए आशीर्वाद की तरह होता है।

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-राजवीर सिंह, सीओ, खेकड़ा क्षेत्र।


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