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कड़ी टक्कर मिलती तो इंचियोन में उभरती नई 'सीमा'

संतोष शुक्ल,मेरठ : एशियाड में स्वर्ण पदक जीतने के बावजूद सीमा अपनी 'सीमा' नहीं छू सकीं। इंचियोन में

By Edited By: Published: Tue, 07 Oct 2014 11:13 PM (IST)Updated: Tue, 07 Oct 2014 11:13 PM (IST)
कड़ी टक्कर मिलती तो इंचियोन में उभरती नई 'सीमा'

संतोष शुक्ल,मेरठ : एशियाड में स्वर्ण पदक जीतने के बावजूद सीमा अपनी 'सीमा' नहीं छू सकीं। इंचियोन में तमाम एशियाई थ्रोअर सीमा पूनिया को कड़ी टक्कर नहीं दे सके, अन्यथा उनकी निगाहें नया एशियाई रिकार्ड बनाने पर थी। रियो ओलंपिक से पहले वह कड़ी स्पर्धा की तलाश में जर्मनी और यूएसए में प्रशिक्षण लेंगी। अगर स्पांसर मिला तो सीमा पूनिया सात बार की व‌र्ल्ड चैंपियन थ्रोअर जर्मनी की लाल फ्रीडल से थ्रो के गुर सीखकर ओलंपिक की साधना में उतरेंगी।

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वीजा ने भी थकाया

लंदन ओलंपिक 2012 में फाइनल तक पहंची सीमा पूनिया की नजर अब रियो ओलंपिक में 65 मीटर से ज्यादा थ्रो लगाना है। ग्लास्गो कॉमनवेल्थ से लेकर इंचियोन एशियाड में सीमा कड़ी स्पर्धा के लिए तरस गई। इंचियोन में सीमा चीन की ली यानफेंग के चार वर्ष पुराने रिकार्ड 66.18 मीटर को पीछे छोड़ने का इरादा लेकर उतरी थीं, किंतु दो चक्र के दौरान चीनी एथलीटों से ढाई मीटर की बढ़त के बाद प्रतिस्पर्धा खत्म सी हो गई। सीमा के कोच अंकुश पूनिया कहते हैं कि कोरिया ने समय पर एक्रीडेशन नहीं भेजा, जिसके लिए भारत में पहुंचकर वीजा बनवाने में कई दिन बर्बाद हुए। अगर यूएसए से सीधे इंचियोन जाने का मौका मिला होता, तो प्रदर्शन और निखरता।

विदेश में हर हफ्ते देंगी परीक्षा

चैंपियन थ्रोअर सीमा पूनिया पूरी शिद्दत से रियो ओलंपिक 2016 की तैयारी करेंगी। यहां पर यूएसए, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, चीन एवं यूरोप के तमाम एथलीटों से निपटना होगा, ऐसे में सीमा को हर हाल में 65 मीटर से ज्यादा दूरी नापनी होगी। इसके लिए सीमा सात बार की व‌र्ल्ड चैंपियन डिस्कस थ्रोअर लाल फ्रीडल से प्रशिक्षण लेंगी, जिनकी तकनीक काफी कुछ सीमा से मिलती जुलती है। फ्रीडल को इंग्लैंड ने भी अनुबंधित किया था। सीमा पूनिया को वर्ष 2012 लंदन ओलंपिक से पहले मित्तल ट्रस्ट ने स्पांसर किया था, किंतु अब ट्रस्ट बंद होने से नए स्पांसर की आवश्यकता पड़ेगी। यूएसए और यूरोप में हर शनिवार एवं रविवार को कंपटीशन होता है। करीब सात डायमंड लीग में डिस्कस थ्रो भी शामिल है, ऐसे में जबरदस्त प्रैक्टिस भी मिल जाती है।

इनका कहना है...

भारत में तैयारी के लिहाज से फरवरी तक का मौसम ठीक है, इसके बाद एथलीटों को बड़ी दिक्कत होती है। यूएसए और जर्मनी में थ्रो का बेहतर माहौल है, जहां औसत थ्रो 64-65 मीटर के बीच मेंटेन करने का प्रयास होगा। एशियाड में कड़ी स्पर्धा नहीं मिली।

-सीमा पूनिया, एशियाड गोल्ड मेडलिस्ट

थ्रो स्पर्धाओं में भारतीय एथलीटों का विश्वस्तरीय प्रदर्शन चौंकाने वाला है। ऐसा प्रतीत होता है कि ओलंपिक में ट्रैक एंड फील्ड में भारत को पहला मेडल थ्रो स्पर्धा में ही मिलेगा। सीमा पूनिया जबरदस्त एथलीट है, जिसमें 65 मीटर पार कर ओलंपिक में पदक की रेस में पहंचने की पूरी क्षमता है।

-काशीनाथ, पूर्व अंतरराष्ट्रीय थ्रोअर


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