29 साल से भाषा की जंग लड़ रहे पुष्पेंद्र
बागपत : एक साधारण से किसान पुष्पेंद्र चौहान ऐसे शख्स हैं जिन्होंने 29 साल पहले भारतीय भाषा आंदोलन का बिगुल बजाया था। उन्होंने प्रण ले रखा है कि जब तक देश से अंग्रेजी का वर्चस्व समाप्त नहीं होगा और देश की शिक्षा और परीक्षा में भारतीय भाषा लागू नहीं होगी, तब तक वे चैन से नहीं बैठेंगे। इस आंदोलन की शुरुआत उन्होंने देश की राजधानी से की थी, जो आज भी जारी है।
पाली गांव के रहने वाले पुष्पेंद्र चौहान ने जुलाई 1985 में दिल्ली के वोट क्लब पर भारतीय भाषा आंदोलन की शुरुआत की थी। इसके पीछे उनका मकसद देश में शिक्षा और परीक्षा में भारतीय भाषा को लागू करवाना था, ताकि देश में बड़े पदों पर भारतीय भाषा के माध्यम से चयन हो सके। इसके साथ ही उनका यह भी मकसद है कि देश से अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व समाप्त हो सके। इसके लिए उन्होंने 16 अगस्त 1988 को दिल्ली में यूपीएससी पर धरना शुरू किया था। देश का शायद ही कोई ऐसा राज्य होगा, जिसके छात्र-छात्राओं का आंदोलन में सहयोग न मिला हो। हर रोज धरने में काफी लोग बैठा करते थे। उनके धरने में देश के कितने ही लोगों ने सहयोग किया। यह धरना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के आश्वासन पर 16 फरवरी 2001 को समाप्त कर दिया था। दोनों नेताओं ने वायदा किया था कि वह उनकी मांगों को पूरा कर देंगे, लेकिन धरना समाप्त होते ही नेताओं के सुर बदल गए और उन्होंने अपना वादा पूरा नहीं किया।
बीकाम और एलएलबी पुष्पेंद्र पेशे से किसान हैं, लेकिन देश के लिए उनके इरादे चट्टान की तरह नजर आते हैं। वे बताते हैं कि यह आंदोलन उनका नहीं, बल्कि पूरे देश का है देश के काफी लोग आंदोलन से जुडे़ हुए हैं और बैठकें आदि भी होती रहती है। यह आंदोलन तब तक समाप्त होने वाला नहीं है जब तक देश में शिक्षा और परीक्षाओं में भारतीय भाषा लागू नहीं हो जाती और अंग्रेजी का वर्चस्व समाप्त नहीं हो जाता है। वह एक न एक दिन अपने मकसद में कामयाब अवश्य होंगे। यह उन्हें पूरा विश्वास है।