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भगवान सूर्य के सिंदूरी दर्शन के साथ पूरी हुई तपस्या

आजमगढ़ : देर रात घर पहुंचने वालों की नींद पूरी नहीं हुई थी लेकिन आंख खुल गई। कारण कि भोर से पहले ही

By Edited By: Published: Thu, 30 Oct 2014 06:45 PM (IST)Updated: Thu, 30 Oct 2014 06:45 PM (IST)
भगवान सूर्य के सिंदूरी दर्शन के साथ पूरी हुई तपस्या

आजमगढ़ : देर रात घर पहुंचने वालों की नींद पूरी नहीं हुई थी लेकिन आंख खुल गई। कारण कि भोर से पहले ही गांव से लेकर शहर तक की गलियों में गूंजने लगे थे छठ मइया के गीत तो वहीं मिन्नत के अनुसार बज रहे थे ढोल। कुछ लोगों ने समय से उठने के लिए मोबाइल में अलार्म सेट कर दिया गया था। आधी नींद भी पूरी नहीं हुई थी अलार्म बजने लगा और आंखें खुल गई। खुलती भी क्यों नहीं गुरुवार को उदयारूढ़ भगवान भाष्कर को अ‌र्घ्य जो करना था। रात में ठंड तो बहुत नहीं रही लेकिन मौसम बदला हुआ था। उसके बाद भी लोगों ने स्नान किया और साफ वस्त्रों को धारण कर कदम बढ़ाने लगे नदी व सरोवर की ओर।

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व्रती महिलाओं के साथ चलने वाले वयस्क व बच्चों के सिर पर पूजा के सामान थे तो साथ जा रही महिलाएं छठ मइया के भजन गा रही थीं। हाथों में कलश और उस पर जलते दीपक के साथ घरों से निकलीं व्रती महिलाओं को देखने के बाद लग रहा था मानों रात के अंधेरे में साक्षात देवियां सड़क पर निकल पड़ी हों। इस दौरान नदी व सरोवरों में दीपदान ने अद्भुत छटा बिखेरी। लग रहा था मानों आसमान के तारे जल में उतर आए हों। सूर्योदय का समय नजदीक आने के साथ घाटों पर भीड़ बढ़ती ही गई। लग रहा था समूचा जनमानस घाटों पर ही जमा हो गया हो।

अ‌र्घ्य के लिए समय से पहले ही गो-शालाओं पर गाय के दूध बिकने लगे थे तो वहीं कुछ स्थानों पर पूजा कमेटियों ने मुफ्त दूध वितरण की व्यवस्था की थी। इससे पहले घाटों पर पहुंचकर व्रती महिलाओं ने अपनी बेदी के पास रंगोली बनाया, सूप में एक दिन पहले चढ़ाए गए ठोकवा, पुआ आदि को बदलकर ताजा रखा। उसके बाद सूप को पूरब दिशा की ओर रखा गया। फिर जल में खड़ी होकर व्रती महिलाओं ने सूर्य की लालिमा दिखने तक तपस्या किया। भगवान भास्कर के सिंदूरी रंग के दर्शन के साथ अ‌र्घ्य शुरू हो गया। इस दौरान नदी व सरोवरों के घाटों पर छठ मइया से जुड़े गीतों से वातावरण गूंजता रहा।

महत्वपूर्ण बात तो यह रही कि जिनके घर यह पूजा नहीं होती है उनकी भी नींद खुल गई थी। कारण कि एक तरफ जहां घर से निकलकर रास्ते भर छठ मइया के गीत गाए जा रहे थे वहीं कुछ महिलाएं मिन्नतों के पूरा होने के उपलक्ष्य में बाजे-गाजे के साथ पूजा के लिए घर से जा रही थीं। पहले व्रती महिला तथा उसके बाद परिवार के सदस्य तथा अन्य श्रद्धालुओं ने दुग्ध का अ‌र्घ्य किया। अ‌र्घ्यदान के बाद परिचित महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाया। घर पहुंचकर महिलाओं ने घर के चौखट की पूजा की और उसके बाद बेदी पर चढ़ाए गए चने को निगलकर पारण किया। घाटों पर भीड़ को देखते हुए खिलौने और गुब्बारे की दुकानें भी लगाई गई थीं। बच्चों ने अपनी पसंद के खिलौनों की खरीदारी की। भक्ति गीतों के कैसेट बजते रहे और बच्चे पटाखा छोड़ते रहे।


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