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सूखे रहे थे होठ फिर भी मुख पर आस्था की चमक

By Edited By: Published: Thu, 28 Aug 2014 09:06 PM (IST)Updated: Thu, 28 Aug 2014 09:06 PM (IST)
सूखे रहे थे होठ फिर भी मुख पर आस्था की चमक

आजमगढ़ : भारतीय संस्कृति और परंपरा वाकई पूरी दुनिया से अलग है। तभी तो आसमान से बरस रही आग, सिर भारी कर देने वाली तीखी धूप और उमस भरी गर्मी के बीच महिलाओं के चेहरे पर कहीं कोई शिकन नहीं दिखी बल्कि दिखा उत्साह और चेहरे पर आस्था की चमक।

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सुबह से मुख में नहीं गया था एक बूंद पानी और न ही अन्न का दाना। कड़ाके की धूप और उमस भरी गर्मी थी। सिर भारी हो रहा था और जुबान सूख रही थी लेकिन सुहागिन महिलाओं के चेहरे पर शिकन नहीं थी। घर में छोटे बच्चे भी परेशान कर रहे थे लेकिन उसके बाद भी गुस्सा गुस्सा नहीं दिखा।

मौका था हरितालिका तीज व्रत का। सुहागन महिलाओं ने पति की दीर्घायु के लिए निराजल व्रत रखा और शाम को शिव-पार्वती की पूजा कर अखंड सुहाग की कामना की।

दिन भर पूजा की तैयारियों में महिलाएं लगी रहीं। बाजारों में रौनक दिखी और लोगों ने नए वस्त्र, फल-फूल आदि की खरीदारी की। शाम होने के साथ शिव मंदिरों में महिलाओं की भारी भीड़ उमड़ी। व्रतियों ने शिव-पार्वती की पूजा की और कथा का श्रवण किया। तमाम घरों में जहां पुरोहित बुलाकर घर में ही कच्ची मिट्टी के शिवलिंग की पूजा और कथा का श्रवण किया गया, वहीं काफी महिलाएं ऐसी थीं जिन्होंने किसी शिवमंदिर में पहुंचकर सामूहिक रूप से शिव-पार्वती की कथा का श्रवण किया।

इस दौरान प्रसाद स्वरूप महिलाओं ने शिव को जहां फल-फूल चढ़ाया वहीं पार्वती के लिए बांस की बनी डलिया में रखकर श्रृंगार का सामान अर्पित किया। भाद्र शुक्ल तृतीया को होने वाले इस व्रत को हरतालिका तीज के नाम से जाना जाता है। परंपरा के अनुसार सुहागन महिलाएं अन्न और जल का परित्याग कर दिन भर व्रत रखती है और रात में शिव-पार्वती की पूजा कर अखंड सुहाग की कामना करती है। इस व्रत से जुड़ी कथाओं में एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु से विवाह होने से बचाने के लिए हिम पुत्री सती का उसकी सखियों ने हरण कर लिया था इसीलिए इसे हरितालिका तीज कहा जाता है।


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