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काले धन के 'हवन' में ढोलक की थाप 'स्वाहा'

औरैया, जागरण संवाददाता : औरैया की ढोलक की थाप में सुरों का वह जादू है कि इसकी थाप राजस्थान, पंजाब, म

By Edited By: Published: Sun, 04 Dec 2016 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 04 Dec 2016 01:00 AM (IST)
काले धन के 'हवन' में ढोलक की थाप 'स्वाहा'

औरैया, जागरण संवाददाता : औरैया की ढोलक की थाप में सुरों का वह जादू है कि इसकी थाप राजस्थान, पंजाब, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों तक गूंजती है। कई प्रवासी भारतीय गुणवत्ता को देखते हुए इसे अपने साथ सात संमदर पार भी ले जा चुके हैं। क्षेत्रीय कारीगरों के रोजगार का यह प्रमुख साधन तो है ही, जनपद की पहचान के रूप में भी इसे जाना जाता है। देश में काले धन के खिलाफ चल रहे 'हवन' में ढोल की थाप 'स्वाहा' होती दिख रही है। ढोलक बनाने वाले कारीगरों के सामने रोजी रोटी का संकट है। सहालग में भी धंधा नहीं हुआ। व्यापारी के पास रुपये नहीं हैं। बाहर माल जा नहीं पा रहा है। इससे पिछले वर्ष की तुलना में 95 फीसदी कम बिक्री हुई है।

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औरैया में बनी ढोलक की आसपास के जनपदों के साथ गैरप्रांतों में भी अच्छी खासी मांग है। ढोलक बनाने के छोटे-बड़े आधा दर्जन से अधिक कारखाने हैं। सहालग मे धंधा अच्छा होता है। इसके लिए पहले से ही माल तैयार करके रखा जाता है। लेकिन इस बार सहालग शुरू होते ही नोटबंदी की घोषणा हो गई। इससे गैरजनपदों व गैर प्रांतों से आने वाले व्यापारी नहीं आए। स्थानीय स्तर पर ही कुछ ढोलकें बिक सकीं। लेकिन खरीद कर भरी गई लकड़ी को खपाने के लिए मजबूरन कारीगर ढोलकें तैयार कर रख रहे हैं। शहर के यमुना रोड पर मुजफ्फर हुसैन का कारखाना है। वहां पहले चार कारीगर काम करते थे। नोटबंदी के बाद दो कारीगर चले गए। वह बताते हैं कि सहालग के समय वह औसतन दो से ढाई सौ ढोलकें बेंच देते थे। इस बार नवंबर में तो दस से 12 ढोलकें ही बिकी हैं। बाहर से एक भी व्यापारी नहीं आया। कारीगरों की मजदूरी नहीं निकल रही है। लेकिन लकड़ी भरी है। उससे थोड़ा बहुत धीरे-धीरे काम करा रहे हैं। कारीगर अबरार उर्फ हब्बू कहते हैं कि वह बीस साल से यह काम कर रहे हैं। ऐसी मंदी तो उन्हें पहले कभी नहीं दिखी। काम न होने से बच्चों की स्कूल की फीस और दूध के भी पैसे नहीं निकल पा रहे हैं। लकड़ी की अनुपलब्धता व बिजली के बिल ने पहले ही धंधा मंदा कर रखा था नोट बंदी से क्षेत्रीय कला का यह व्यवसाय पूरी तरह ठप होने की कगार पर है। व्यवसाइयों की ¨चता यह है कि नक्काशी और मढ़ाई के हुनरमंद कारीगर हाथ से निकल गए तो जनपद को पहचान देने वाला यह कारोबार खुद अपनी पहचान खो देगा।


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