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मां तो नहीं, मगर मां जैसा ही दुलार

औरैया, जागरण संवाददाता : मां.. । संसार का सबसे खूबसूरत शब्द सुनकर उन्हें लगा कि उनकी बेटी एश्वर्या आ

By Edited By: Published: Sat, 23 Jan 2016 01:00 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2016 01:00 AM (IST)
मां तो नहीं, मगर मां जैसा ही दुलार

औरैया, जागरण संवाददाता : मां.. । संसार का सबसे खूबसूरत शब्द सुनकर उन्हें लगा कि उनकी बेटी एश्वर्या आवाज दे रही है, लेकिन तभी याद आया कि वह तो अपने नाना नानी के पास है। पलट कर देखा तो स्कूल कक्ष के द्वार पर अपने विशेष नेत्रों को झपकाती शिवांगी खड़ी थी। दोनों हाथ हवा में फैलाकर उन्हें तलाश रही मासूम को देखकर रहा नहीं गया और दौड़कर उसे सीने से लगा लिया। ऐसे वाकए शहर के खांडेराव स्थित दिव्यांग विद्यालय में अक्सर नजर आते हैं। करीब 160 विशेष बच्चों को अपना मान चुकी समेकित शिक्षा की जिला समन्यक विनीता दीक्षित इन बच्चों पर मां जैसा ही स्नेह उड़ेलती हैं।

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समेकित शिक्षा की संविदा जिला समन्वयक विनीता ने 2006 में दिव्यांग बच्चों की देखरेख का जिम्मा संभाला था। इससे पहले वह अहमदाबाद के त्रिपदा इंटरनेशनल घाट लोडिया स्कूल में थीं। उनके पति अविनाश त्रिपाठी एल्मिको में काम करते हैं। वर्तमान में वह सिम्ब्योसिस पूना में प्रवक्ता हैं। उन्होंने ही उन्हें दिव्यांग बच्चों को आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी। इसी के तहत उन्होंने जनपद में सर्व शिक्षा अभियान के तहत संविदा पर नौकरी शुरू की। विशेष बच्चों के लिए उनके मन में अपार स्नेह है। इसी के तहत कई संस्थाओं से संपर्क कर उन्होंने उनके लिए संसाधन जुटाए हैं। जायण्ट्स से कई बच्चों का सामान रखने के लिए बक्से हासिल किए तो एनटीपीसी से सोलर हीटर व वाटर हीटर प्राप्त किए। जिलाधिकारी ने नेडा के तहत 8.60 लाख की लागत से 4 केवी का सोलर पॉवर जनरेटर व दो कक्ष मुहैया कराए। उनकी दिनचर्या सुबह फोन पर आया से बच्चों के जागने, नाश्ते व नहाने से जुड़े सवालों से होती है। पूरे दिन बच्चों के बीच रहकर वह उन्हें पढ़ाती भी है और उनके साथ खेलती भी हैं। मूक बच्चों को स्पीच ट्रे¨नग देकर उन्हें बोलना सिखाने की कोशिश करती हैं। पूरा दिन ही बच्चों की ट्रे¨नग में गुजर जाता है। यही वजह हे कि उन्होंने अपनी 11 वर्षीय बेटी एश्वर्या को उसके नाना नानी के पास रख छोड़ा है। कभी कभी वह उलाहना देती है कि उन्होंने एक सैकड़ा से अधिक बच्चों को अपना लिया है। इसलिए उनके पास उसके लिए वक्त ही नहीं है। इन सब स्थितियों में भी संविदा नौकरी की सेवा शर्तों से ऊपर उठकर वह बच्चों की देखभाल करती हैं। अपने आचरण से विनीता ने खुद को तो तंत्र का गण साबित किया ही है। 160 दिव्यांग बच्चों को भी भारतीय तंत्र का जिम्मेदार गण बनाने की मुहिम में जुटी हैं।


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