जगह-जगह जाम और दुर्घटनाएं हुई आम
गतिरोध -ट्रैफिक सिस्टम और पार्किंग -औसतन प्रतिदिन हादसों में 42 से 45 लोग हो रहे काल कवलित आनन्
गतिरोध -ट्रैफिक सिस्टम और पार्किंग
-औसतन प्रतिदिन हादसों में 42 से 45 लोग हो रहे काल कवलित
आनन्द राय, लखनऊ : यातायात व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के लिये योजनाएं तो खूब बनी लेकिन हर छोटे-बड़े शहर में जाम और आये दिन होने वाली दुर्घटनाओं से मुक्ति नहीं मिल सकी। उप्र में औसतन प्रतिदिन 42 से 45 लोग सड़क हादसे में मारे जा रहे हैं। यह हालात इसलिए है क्योंकि सड़क पर वाहनों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है लेकिन इन्हें नियंत्रित करने के लिए यातायात पुलिस की भर्ती ही नहीं हो रही है। इसीलिए यातायात में सुधार नहीं हो रहा है।
उप्र में सरकार ने यातायात सुधार के नाम पर योजनाओं का पिटारा खोल दिया है लेकिन बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है। जो योजनाएं बन भी रही हैं उन्हें पूरा होने तक एक अलग समस्या सामने आ जा रही है। बानगी के तौर पर देखें तो सपा सरकार बनने के बाद यातायात सुधार के लिए सरकार ने लखनऊ, गाजियाबाद और आगरा के लिए 22.50 करोड़ रुपये दिए। अप्रैल 2012 में तय हुआ कि आने वाले अगस्त तक लखनऊ के चौराहों पर 70 सीसीटीवी कैमरे लगाए जायेंगे, लेकिन यह प्रक्रिया पूरी होने में तीन साल से ज्यादा वक्त लग गया। समय तो अधिक लगा ही, खर्च में भारी वृद्धि हुई। इन कैमरों के लगने के बावजूद दुर्घटना करने के बाद वाहन चालक फरार हो जाते हैं और पुलिस बल न होने से उन्हें पकड़ना कठिन हो गया है।
फोर्स की कमी से सर्वाधिक दिक्कतें
तरक्की की राह पर चल पड़े उप्र में बड़े महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक की महिलाएं ड्राइविंग कर रही हैं, लेकिन उन पर नियंत्रण के लिए यातायात में एक भी महिला पुलिस नहीं है। मौजूदा समय में यातायात विभाग में अधिकारियों से लेकर सिपाहियों तक कुल संख्या लगभग 3500 है, जबकि कई वर्षो से यातायात निदेशालय ने 86 टै्रफिक इंस्पेक्टर, 1056 ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर, 3500 हेड कांस्टेबिल और 8000 कांस्टेबिल मांगे हैं। उच्चाधिकारी कहते हैं कि भर्ती प्रक्रिया पूरी होने पर यह समस्या दूर हो जायेगी।
पार्किंग की समस्या जस की तस
उप्र में सालाना नौ लाख से ज्यादा वाहनों का पंजीकरण हो रहा है और उसके सापेक्ष पार्किंग का कोई इंतजाम नहीं है। राजधानी और गाजियाबाद समेत कुछ महानगरों में तो बहुमंजिली पार्किंग की व्यवस्था है, लेकिन कई बड़े महानगरों में पार्किंग को लेकर बनी योजनाएं कारगर नहीं हो पाई। यहां बड़े-बड़े महानगरों में भी न ट्रैफिक संकेत है और न ही फुट ओवरब्रिज। लखनऊ में चारबाग और पालिटेक्निक चौराहे जैसे स्थानों पर फुट ओवरब्रिज बने भी तो एस्केलेटर की व्यवस्था नहीं की गयी।
राह में रोड़ा, फुटपाथ का कब्जा
राजधानी के हजरतगंज और महानगर जैसे इलाकों से लेकर मेरठ, बरेली, कानपुर, वाराणसी, मुरादाबाद, आगरा, गोरखपुर, इलाहाबाद, अलीगढ़ जैसे महानगरों के चौराहों पर ठेले-खोमचे वालों ने कब्जा कर लिया है। फुटपाथ भी खाली नहीं रह गये हैं। लाख कोशिशों के बावजूद न तो नगर निगम सड़क पर लगने वाले ठेला और खोमचा हटा सका और न ही ट्रैफिक के सिपाही आटो वालों को सिस्टम समझा सके। लोक निर्माण विभाग की हालत भी औरों से बेहतर नहीं है। इनकी उपेक्षा और लापरवाही से भारी जाम लगता है और यातायात व्यवस्था प्रभावित होती है।
एकीकृत यातायात प्रबंधन योजना से उम्मीद
प्रमुख सचिव गृह देबाशीष पंडा कहते हैं कि सरकार यातायात व्यवस्था सुधारने और हादसों पर लगाम लगाने के लिए एकीकृत यातायात प्रबंधन योजना शुरू करने जा रही है। पहले चरण में यह योजना कानपुर, आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद, लखनऊ, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, मेरठ, गोरखपुर, आजमगढ़, बरेली और मुरादाबाद में लागू होगी। इस पर 2079 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इराजधानी में राज्य स्तरीय केंद्रीय नियंत्रण कक्ष और यातायात प्रबंधन में लगने वाले कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण केंद्र भी खोला जायेगा। पंडा के मुताबिक सम्बंधित 12 महानगरों में 50-50 यातायात संकेतक लगाये जायेंगे।
हाइवे पुलिस करेगी सुधार
प्रमुख सचिव गृह देबाशीष पंडा का कहना है कि उप्र में यातायात निदेशालय के अधीन हाईवे पेट्रोल परियोजना की स्थापना होने जा रही है। विश्व बैंक की सहायता से स्थापित होने वाली हाइवे पुलिस दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के साथ ही हादसों के शिकार लोगों को सुविधा पहुंचाने का कार्य करेगी।