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डॉगी से दुलार, कहीं दे न दे रैबीज

By Edited By: Published: Fri, 26 Sep 2014 01:04 AM (IST)Updated: Fri, 26 Sep 2014 01:04 AM (IST)
डॉगी से दुलार, कहीं दे न दे रैबीज

औरैया, जागरण संवाददाता : नेट पर इन दिनों एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें मालिक के आईलवयू कहने पर उसका डॉगी भी यही वाक्य दोहराता है। पालतू पशुओं के प्रति लोगों का प्रेम आदर्श हो सकता है, लेकिन कैनाइन जानवरों से बर्ताव के दौरान सावधानी बरतना भी बेहद जरूरी है क्योंकि इनके काटने पर रैबीज जैसा खतरनाक और जानलेवा रोग हो सकता है। खासतौर से कुत्ते के काटने पर विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए। इसके अलावा बंदर, सियार समेत सभी कैनाइन जानवर रैबीज के वाहक होते हैं। इनके काटने पर तत्काल उपचार जरूरी है। रेबीज ऐसी बीमारी है जिसके विषाणु काफी दिन शरीर में पड़े रहने के बाद सक्रिय हो सकते हैं। कई मामलों में देखा गया है कि छह से आठ माह बाद लोगों में रैबीज के लक्षण नजर आते हैं, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है।

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इनसे रहें सावधान

गर्म खून वाला कोई भी जानवर यहां तक कि मनुष्य भी रैबीज का संक्रमण फैला सकता है। यह कुछ जंगली और पालतू पशुओं की लार में पाया जाता है। देश में रैबीज संक्रमण के 97 फीसद मामले कुत्ता काटने, दो फीसद मामले बिल्ली के काटने तथा एक फीसद सियार और बंदर के काटने पर होते हैं। चिकित्सकों की मानें तो रैबीज के विषाणु मनुष्य से मनुष्य में भी स्थानांतरित हो सकते हैं। हालांकि इसके कम ही मामले प्रकाश में आए हैं। उधर एक नए अध्ययन के मुताबिक जिस्म में खरोंच के स्थान पर कुत्ते के चाटने पर भी संक्रमण हो सकता है।

पांच माह में 1500 मामले

जिला अस्पताल के आंकड़ों पर नजर डालें तो रैबीज से संक्रमित होने वाले और कुत्ता काटे के रोज लगभग 20 मामले सामने आते हैं। बीती 12 अगस्त को 34 व 19 अगस्त को 44 लोगों को एंटी रैबीज वैक्सीन दी गई है। अप्रैल से लेकर सितंबर तक 1492 डॉग बाइट से पीडि़त लोग जिला अस्पताल पहुंचे।

मरीजों में बच्चों का फीसद अधिक

जिला अस्पताल की एआरवी क्लीनिक के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता लगा कि पीड़ितों में 60 फीसद संख्या 3 से 16 वर्ष के बच्चों और किशोरों की है। चिकित्सकों के मुताबिक पालतू पशुओं से व्यवहार करने में बच्चे ज्यादातर लापरवाही बरतते हैं जिससे उन्हें शिकार बनना पड़ता है।

उदासीनता के चलते बढ़ रही दिक्कत

करीब एक साल पूर्व शहर के मोहल्ला तिलक नगर में एक सेवानिवृत्त शिक्षक को बंदरों के खदेड़ने पर जान से हाथ धोना पड़ा था। छत से गिरकर वह गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे और जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया था। इसी तरह शंकर लाल की बगिया में पुलिस के एक सिपाही को बंदरों ने बुरी तरह काटा था। उपचार के लिए उसे महीना भर कानपुर के अस्पताल में रहना पड़ा था। बुधवार को ही मुरादगंज में चार बच्चे बंदरों का शिकार बने। जख्मी हालत में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। दिक्कत यह है कि शहर और कस्बों को बंदरों और कुत्तों से मुक्त कराने का कोई अभियान नहीं चलाया जाता। समस्या को लेकर लोगों ने कई बार नगर प्रशासन और वन विभाग के लोगों से शिकायत की, लेकिन दोनों विभाग एक दूसरे पर जिम्मेदारी मढ़कर पीछा छुड़ाते नजर आए।

यह हैं लक्षण

जिला अस्पताल के सीएमएस एनके मिश्र ने लक्षण,बचाव व रोकथाम के यह टिप्स दिए हैं।

* अत्यधिक प्यास लगना

* मरीज के अंदर पानी के प्रति डर

* शरीर में ऐंठन और बदहवासी

* मुंह से लगातार लार आना

* कई मामलों में मुंह से विचित्र आवाजें निकलना

कुत्ता काटे तो ऐसे करें बचाव

* सबसे पहले घाव को कार्बोलिक साबुन से अच्छी तरह धोएं।

* नल या हैंडपंप के पानी से करीब पांच मिनट तक साफ करें।

* अस्पताल पहुंचकर जल्द से जल्द एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाएं।

* अपने पालतू का भी कराएं वैक्सीनेशन।

* काटने वाले कुत्ते पर रखें नजर

इससे करें परहेज

* झाड़ फूंक के चक्कर में न पड़ें।

* लाल मिर्च या अन्य देशी उपचार खतरनाक हो सकते हैं, इनसे बचाव करें।

* वैक्सीन लगवाने में देरी नहीं।

* नीम हकीम से करें परहेज।


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