.. आखिर कहां से आ रहा जिले में खून
अमरोहा। उन्नीस लाख की आबादी के लिए जिले में एकमात्र ब्लड बैंक हैं, जहां से हर माह केवल 20 से 25 यूनि
अमरोहा। उन्नीस लाख की आबादी के लिए जिले में एकमात्र ब्लड बैंक हैं, जहां से हर माह केवल 20 से 25 यूनिट खून की ही आपूर्ति हो रही है। जबकि निजी नर्सिंग होम में रोजाना कई-कई आपरेशन होते हैं, वहीं औसतन प्रतिदिन जिले में दो सड़क हादसे भी हो रहे हैं। ऐसे में मरीजों के लिए आखिर खून की आपूर्ति कहां से हो रही है, यह स्वास्थ्य विभाग के अधिकरी भी नहीं जानते। इन हालातों में इसमें संशय नहीं कि लाल खून के कारोबार में कुछ तो काला जरूर है।
वैसे तो जनपद में छोटे बड़े पंजीकृत निजी नर्सिंग होम की संख्या पांच सौ के आसपास है। कई में तो रोजाना छोटे बड़े आपरेशन होते हैं। इसमें से कुछ नर्सिंग होम तो तीमारदारों पर ही खून की व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंप देते हैं, जबकि कुछ जिला अस्पताल की ब्लड बैंक या मुरादाबाद के साईं अस्पताल, विवेकानंद अस्पताल, तीर्थकर महावीर अस्पताल आदि स्थानों से ब्लड मंगाते हैं। हकीकत में यदि इन अस्पतालों से ही ब्लड आ रहा है तो कोई ¨चता की बात नहीं है, लेकिन यदि अन्य माध्यमों से खून की आपूर्ति हो रही है तो मामला गंभीर है। बिना पंजीकृत ब्लड बैंक से आने वाले खून को चढ़ाने से मरीज को विभिन्न दिक्कतें हो सकती हैं। जिले में केवल जिला अस्पताल में ही एकमात्र ब्लड बैंक हैं, जहां से जरूरत पड़ने पर खून की आपूर्ति की जाती है। इस सरकारी ब्लड बैंक में सामान्य तौर पर 15 से 20 यूनिट ब्लड हमेशा संरक्षित रहता है। जबकि हर माह करीब 20 से 25 यूनिट खून की खपत हो रही है। इसमें भी सबसे ज्यादा पॉजीटिव ग्रुप के खून की 90 फीसद डिमांड रहती है। यानि कि ए पाजीटिव, बी पाजीटिव, एबी पाजीटिव व ओ पाजीटिव खून की खपत ज्यादा है। जबकि ओ निगेटिव व एबी निगेटिव के खून की खपत न के बराबर रहती है। दुर्घटनाओं में घायल मरीजों को ही इसकी ज्यादा आवश्यकता रहती है। जिला अस्पताल, जोया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व गजरौला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में हादसों के घायल मरीज ज्यादा आते हैं। जबकि शहर के गर्ग हास्पिटल, इंदिराज, संजीवनी नर्सिंग होम व शकील नर्सिंग होम के संचालक भी जिला अस्पताल से ही खून लेते हैं। जबकि अन्य निजी चिकित्सक बाहर से ही खून की व्यवस्था सुनिश्चित कराते हैं। इसके अलावा जिला अस्पताल में आने वाली प्रसूताओं को जरूरत पड़ने पर खून चढ़ाया जाता है। हालांकि खून के बदले खून ही दिया जाता है। इनके अलावा डोनर्स भी स्वेच्छा से ब्लड डोनेट करते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुल मिलाकर महीने भर में 30 से 35 डोनर्स द्वारा ब्लड डोनेट किया जाता है। वैसे भी 35 दिन के भीतर ही ब्लड का उपयोग किया जाना अनिवार्य है। ब्लड को सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड चेन व्यवस्थित किया जाना जरूरी है, अन्यथा ब्लड के खराब होने की संभावना हो रहती है। दो से छह डिगी सेंटीग्रेट पर ही ब्लड सुरक्षित रहता है। इसलिए पंजीकृत ब्लड बैंक से खून लिया जाए। अन्य जुगाड़बाजी से लिये गए खून से मरीज की जान जोखिम में पड़ सकती है।
सीएमओ बोले-मुझे नहीं पता ब्लड बैंक की संख्या
जिन पर जनपद की स्वास्थ्य सेवाओं के सुचारु संचालन की जिम्मेदारी है, उन्हें ही नहीं पता की जनपद में कितने ब्लड बैंक हैं। जब सीएमओ डॉ.एसके जैन से पूछा गया तो उन्होंने तपाक से कहा कि वह कल रजिस्टर में देखकर बताएंगे कि जनपद में कितने ब्लड बैंक संचालित हैं। लेकिन बाद में कहा कि उन्हें केवल जिला अस्पताल में ही ब्लड बैंक की जानकारी है। ऐसे में जिले म ं अपंजीकृत ब्लड बैंक के संचालन से भी इंकार नहीं किया जा सकता।