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मजबूरी व लालच करा रहे रोडवेज बसों से हादसे

By Edited By: Published: Fri, 19 Sep 2014 09:12 PM (IST)Updated: Fri, 19 Sep 2014 09:12 PM (IST)

अमरोहा। रफ्तार तेज करना चालकों की आदत में शुमार नहीं बल्कि उनकी मजबूरी व लालच होता है। रोडवेज के अधिकारी नियमित बस चालकों को प्रति लीटर डीजल के एवरेज के साथ सवारियों की संख्या निर्धारित कर देते हैं। यही अनुबंधित बस चालकों के साथ भी होता है। उन्हें भी प्रतिदिन 300 किमी. बस को चलाना लाजमी होता है। अन्यथा जुर्माना उन्हें अपनी जेब से भरना पड़ता है। इस जुर्माने से बचने के लिए रोडवेज के चालक अधिकांश ध्यान बस के एक्सीलेटर पर देते हैं न कि क्लच व ब्रेक पर। साथ ही उन्हें ओवर टाइम का पैसा भी मिलता है। शायद एक दूसरी यही वजह है कि बस चालक नींद से बोझिल आंखों से बसों का स्टेयरिंग थामे रहते हैं।

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अमूमन नेशनल हाइवे व स्टेट हाइवे पर दौड़ने वाली रोडवेज की बसें हवा से बातें करती हैं। लोग उन्हें रफ्तार का बादशाह भी कहते हैं। लेकिन अंदर की बात कुछ और ही है। दरअसल बस की रफ्तार बढ़ाना चालकों का शौक नहीं है। बल्कि यह उनकी मजबूरी है। वर्तमान में परिवहन विभाग के पास अपनी निजी बसें हैं तो अनुबंध पर भी बसें चल रही हैं। अब रोडवेज के अधिकारी नियमित बस चालकों के लिए प्रति लीटर डीजल के हिसाब से 6.30 किमी. का एवरेज तय कर देते हैं। फिर उनके पास समय की कमी भी रहती है। जो मौजूदा बसों की स्थिति से लिहाज से ठीक नहीं है। प्रत्येक बस को आधा घंटा बस स्टेंड पर रुकना होता है तथा पांच मिनट स्टापेज पर सवारियां बैठाने व उतारने के मिलते हैं। ऐसे में बस चलाते समय बार-बार ब्रेक लगाने व गियर बदलने से 6.30 किमी. प्रति लीटर का एवरेज नहीं मिलता। जिसके चलते नियमित बस चालक गियर बदलने की झंझट न लेते हुए सिर्फ रफ्तार पर ध्यान देते हैं। ऐसा ही कुछ अनुबंधित बस चालकों के साथ भी है। रोडवेज के अधिकारियों ने अनुबंधित चालकों के लिए प्रतिदिन यानि दस घंटे में 300 किमी. बस चलाना अनिवार्य कर दिया है। अब समय के लिहाज से औसतन चार घंटे बस स्टेंड पर ठहरने व सवारियां उतारने-बैठाने में चार घंटे खर्च होते हैं। ऐसे में शेष बचे छह घंटे के भीतर 300 किमी. सफर पूरा करने के लिए लगभग 70 किमी. प्रतिघंटा की रफ्तार से बस दौड़ानी पड़ती है। जबकि उनके सामने सवारियों की संख्या की मजबूरी भी होती है। एस बस के लिए 50 सवारियों का अनुबंध है। कुल अनुबंध के 65 प्रतिशत यानि 35 सवारियां चलने से पहले बस में होना जरुरी हैं। इनकी संख्या पूरी करने के लिए भी अनुबंधित बसों के चालक रफ्तार पर ध्यान देते हैं। क्योंकि टारगेट पूरा न होने पर रोडवेज को होने वाले नुकसान की भरपाई चालकों को अपनी जेब से करनी पड़ती है। इसके अलावा रोडवेज बस चालकों को ओवर टाइम का मिलने वाला पैसा भी उन्हें बस का स्टेयरिंग नहीं छोड़ने देता। बता दें कि नियमित चालकों को आठ घंटे बस चलानी होती है। लंबे रूट की बसों पर निगम दो चालक रखता है। जबकि संविदा पर तैनात चालकों को निगम एक रुपये दस पैसे प्रति किमी. के हिसाब से पैसे का भुगतान करती है। उन्हें ओवर टाइम भी दिया जाता है। जिसके लालच में बस चालक स्टेयरिंग संभाले रहते हैं।


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