निर्माण और सृजन के देवता विश्वकर्मा को प्रणाम
अंबेडकरनगर : जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीणांचल तक विश्वकर्मा भगवान का विधि-विधान से पूजन-अर्चन कर रो
अंबेडकरनगर : जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीणांचल तक विश्वकर्मा भगवान का विधि-विधान से पूजन-अर्चन कर रोजगार में सफलता का आशीर्वाद मांगा गया। राजकीय इंजीनिय¨रग कॉलेज से लेकर, लोक निर्माण विभाग, एकलव्य स्टेडियम तथा सभी कार्यदायी संस्थाओं समेत निजी संस्थाओं में विश्वकर्मा की पूजा की गई। लोक निर्माण विभाग में आयोजन के दौरान सहायक अभियंता अजीत यादव, डीसी भूकेश, आईबी मौर्य, कृपाशंकर, हरिकृष्ण, रामजनम, संजय कनौजिया, तीरथ ¨सह, संतोष कुमार गुप्त, ध्रुवचंद्र व दानबहादुर मौर्य आदि मौजूद रहे। अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा की ओर से विविध कार्यक्रम व गोष्ठी का आयोजन हुआ। यहां प्रभंजन विश्वकर्मा, रविकांत विश्वकर्मा, राम जियावन विश्वकर्मा आदि मौजूद रहे। इंजीनिय¨रग कॉलेज में निदेशक डॉ. केएस वर्मा ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया। मोनू आटो सेल्स पर विश्वकर्मा जयंती के मौक पर किसानों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर गोष्ठी में विमलेंद्र प्रताप ¨सह ने अध्यक्षता करते हुए उपहार भेंट किए। ईसीआई तथा विट्स आईटीआई पर भी पूजन-अर्चन हुआ।
आलापुर संवादसूत्र के मुताबिक राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान नरियांव में प्रधानाचार्य काशीनाथ की अध्यक्षता में विश्वकर्मा भगवान की जयंती मनाई गई। टांडा संवादसूत्र के मुताबिक विश्वकर्मा पूजा का प्रमुख कार्यक्रम एनटीपीसी में आयोजित किया गया। विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर हवन पूजन के कार्यक्रम आयोजित किए गए। एनटीपीसी के महाप्रबंधक एके सिन्हा ने हवन-पूजन किया। इस अवसर पर उत्पादकता बढ़ाने तथा उच्च गुणवत्ता को बनाए रखने के साथ कार्य करने के लिए कार्यकर्ताओं, कारीगरों ने विद्युत गृह के केंद्रीय वर्कशाप में वास्तुकला एवं इंजीनिय¨रग के देवता भगवान विश्वकर्मा की भव्य प्रतिमा के समक्ष पूजन-अर्चना किया। भंडारे के आयोजन के साथ प्रसाद वितरण किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में कामगार सम्मिलित हुए। विश्वकर्मा महासभा के संरक्षक रामपियारे के कश्मीरिया स्थित प्रतिष्ठान में विश्वकर्मा पूजा आयोजित किया गया। प्रतिष्ठान के कामगारों ने पूजा-अर्चना कर प्रसाद ग्रहण किया। नगर के विश्वकर्मा मंदिर छज्जापुर से शनिवार को परंपरागत शोभायात्रा निकाली जाएगी। शाम को भंडारे का आयोजन किया जाएगा।
विविध रूपों में होती पूजा : भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं। उन्हें कहीं पर दो बाहु, कहीं चार, कहीं पर दस बाहुओं तथा एक मुख, और कहीं पर चार मुख व पंचमुखों के साथ भी दिखाया गया है। उनके पाँच पुत्र- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं। यह भी मान्यता है कि ये पाँचों वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार भी वैदिक काल में किया। इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चाँदी से जोड़ा जाता है।
शिल्प और वास्तु विद्या के देवता भगवान विश्वकर्मा निर्माण और सृजन के देवता है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में जितने भी नगर और उनकी राजधानी बनी उनका निर्माण विश्वकर्मा जी ने ही किया। यह भी कहा जाता है कि सतयुग का स्वर्गलोक, त्रेता युग की लंका, द्वापर की लंका तथा कलयुग के प्राचीन शहर हस्तिनापुर को बनाने का श्रेय विश्वकर्मा जी को ही है। पुराणों में इसका विवरण मिलता है। विश्वकर्मा जी के पांच पुत्र मनु, मय, त्वस्टा, शिल्पी और देवज्ञ थे। पांचों पुत्र अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञ थे। विश्वकर्मा जी निर्मित वास्तुशास्त्र के उपयोग से लोग सुख समृद्धि पाते है। इस तरह सृष्टि के निर्माण में भगवान विश्वकर्मा ने एक अभियंता के रूप में काम किया। इसके लिए उन्हें सदैव याद किया जाता है।