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कलकल बहती गंगा का पानी 'काला'

जासं, इलाहाबाद : एक पखवाड़े पूर्व तक दारागंज व उसके आसपास के घाटों पर गंगा कलकल करतीं बह रही थीं। धार

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Feb 2017 08:09 PM (IST)Updated: Sun, 26 Feb 2017 08:09 PM (IST)
कलकल बहती गंगा का पानी 'काला'
कलकल बहती गंगा का पानी 'काला'

जासं, इलाहाबाद : एक पखवाड़े पूर्व तक दारागंज व उसके आसपास के घाटों पर गंगा कलकल करतीं बह रही थीं। धाराएं इतनी तेज थीं कि घाटों पर बैरिकेडिंग लगानी पड़ी थी। लेकिन रविवार को नजारा बिल्कुल जुदा दिखा। गंगा की धाराएं शांत थीं और पानी का रंग भी काला था। इसके बावजूद लोग गंगा नदी में आस्था के चलते डुबकी लगाते रहे।

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शहर में छोटे बड़े मिलाकर कुल 64 नाले हैं। इसमें से राजापुर सलोरी, बख्शी बांध, मोरी गेट, गऊघाट, चाचर नाला व घाघर नाला बड़े नालों में गिने जाते हैं। कहा जाता है कि शहर का ज्यादातर गंदा पानी इन्हीं नालों के सहारे गंगा-यमुना में मिलता है। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के आंकड़ों पर विश्वास करें तो शहर से रोज 270 एमएलडी गंदा पानी निकलता है। इस दूषित पानी के शोधन के लिए कई सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाए गए हैं जहां रोज लगभग 250 एमएलडी पानी के शोधित होने का दावा किया जाता है। हालांकि, जानकार बताते हैं कि सभी एसटीपी पूरी क्षमता से काम नहीं करते हैं। रात में पानी को बाईपास करके गंगा और यमुना में बहा दिया जाता है। माघ मेले के दौरान शहर के नालों को टेप कर दिया जाता है। इस बार भी कुछ ऐसा ही किया गया। नाले बंद हुए और नरौरा से पानी छोड़ा जाने लगा। नतीजा गंगा की कलकल करतीं लहरें श्रद्धालुओं को अपने आंचल में समेटने को बेकरार दिखीं। माघ मेले के दौरान यह सिलसिला चला, लेकिन जैसे ही मेला खत्म हुआ, गंगा की उपेक्षा शुरू हो गई। नरौरा से पानी आना बंद हो गया तो फिर गंगा में हर तरफ रेत नजर आने लगीं। इस बीच शहर के एक दो बड़े नालों को छोड़कर सबका मुंह खोल दिया गया। गंगा के बचे हुए पानी में नालों का पानी भी जाकर मिल गया। यह सब इतनी तेजी से हुई कि कोई समझ नहीं पाया। श्रद्धालुओं को निराशा तब हुई जब उन्हें गंगाजल काला नजर आया। दारागंज से लेकर त्रिवेणी घाट तक फैली दुर्गध से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है इसको देखते हुए ज्यादातर श्रद्धालु तो संगम की ओर मुड़ जा रहे हैं। कुछ आस्था में वशीभूत होकर वहीं डुबकी लगा रहे हैं।

बीमारी बांट रहा नदियों का जल

इसे विडंबना कहें या और कुछ। नदियों के किनारे बसे लोग भी पीने के पानी के लिए तरसते हैं। सुनकर हैरत होती है, पर सच्चाई यही है। नदियों में प्रदूषण का यह हाल है कि इनका पानी पीने भर से शरीर में कई तरह की बीमारियां घर कर जाती हैं। इलाहाबाद के यमुनापार क्षेत्र के दर्जनों ऐसे गांव हैं जहां के लोग मजबूरी में गंगा-यमुना का पानी पीते हैं। नहाने धोने से लेकर भोजन बनाने तक का कार्य नदी के पानी से ही होता है। नतीजा चर्म रोग जैसी कई बीमारियां उन्हें अपना शिकार बना लेती हैं।

- अपने निजी स्वार्थो का त्यागकर गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने का संकल्प लेना होगा। केंद्र में बनी सरकार से उम्मीद बंधी थी। खासकर गंगा के दर्द को नजदीक से महसूस करने वाली केंद्रीय मंत्री उमा भारती से। तीन साल हो गया, पर अभी तक गंगा के लिए कुछ किया नहीं जा सका।

स्वामी हरिचैतन्य ब्रहमचारी, संयोजक, गंगा प्रदूषण मुक्ति अभियान

गंगा में पानी कम हुआ है। हो सकता है कि इसके चलते पानी काला नजर आ रहा हो। यह भी हो सकता है कि नाले आदि भी खोल दिए गए हों। मैं इस समय दिल्ली में हूं। असलियत क्या है, यह तो आने के बाद ही पता चलेगा।

मो. सिकंदर, क्षेत्रीय अधिकारी गंगा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड


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