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इलाहाबाद से आज ही अंकुरित हुए थे संसदीय अवधारणा के बीज

By Edited By: Published: Sun, 08 Jan 2012 02:16 AM (IST)Updated: Sun, 08 Jan 2012 02:16 AM (IST)
इलाहाबाद से आज ही अंकुरित हुए थे संसदीय अवधारणा के बीज

शरद द्विवेदी, इलाहाबाद

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच शहर की एक खूबसूरत इमारत विधायी स्मृतियों का दस्तावेज बनकर खड़ी है, जो याद दिलाती है कि इलाहाबाद की सरजमीं से ही पहला विधायी संदेश निकला था। यही वह धरती है जहां संसदीय अवधारणा के बीज अंकुरित हुए। तारीख थी आठ जनवरी, सन 1887 और स्थान थार्नहिल मेमोरियल हॉल, यानी आज की राजकीय पब्लिक लाइब्रेरी, इलाहाबाद। यह वो ऐतिहासिक स्थल है, जहां 125 साल पहले विधायी इतिहास का सृजन हुआ।

उस समय उत्तर प्रदेश के पहले विधानमंडल की पहली बैठक की गहमागहमी को लेकर हर किसी में जिज्ञासा थी। यह स्वाभाविक भी था, स्थापनाकालीन सत्र में कौंसिल के नौ सदस्यों में चार भारतीय पं.अयोध्यानाथ पाठक, मौलवी सैयद अहमद खान, राजा प्रताप नारायण सिंह और राय बहादुर दुर्गा प्रसाद भी शामिल थे। अंग्रेज और भारतीय सदस्यों के औपचारिक परिचय के बाद कुछ घंटों तक चली इस बैठक में कई नीतियों के निर्धारण पर मौखिक सहमति जताई गई। बैठक के समापन के साथ ही यह संदेश भी चला गया कि सरकार इलाहाबाद में बैठती है। हालांकि, यहां सदन की छह बैठकें ही हो सकीं। इसके बाद विधानमंडल स्थानांतरित होकर लखनऊ चला गया। पर इलाहाबाद को यह गर्व सदैव रहेगा कि उत्तर प्रदेश में संसदीय अवधारणा व इतिहास की रचना उसने की।

पठन-पाठन के शौकीन जो लोग भी इस थार्नहिल हॉल यानी राजकीय पब्लिक लाइब्रेरी में आते हैं, उन्हें उस समय के ऐतिहासिक क्षणों के दस्तावेज देखने व पढ़ने का मौका मिलता है। इनसे पता चलता है कि इलाहाबाद के इस हॉल में उत्तर प्रदेश विधानमंडल की पहली बैठक आठ जनवरी 1887, दूसरी 19 फरवरी, तीसरी 19 मार्च चौथी 16 अप्रैल, पांचवी 23 अप्रैल एवं छठीं बैठक 11 नवंबर,1887 को हुई। सारी बैठकों की अध्यक्षता अल्फ्रेड लायल ने की। परिषद में प्रथम विधेयक 'बिल ऑफ शर्टनिंग द लैंग्वेज यूज्ड इन दि एक्ट्स ऑफ कौंसिल' रखा गया। इसका परिक्षण पं. अयोध्या नाथ ने किया। इसके बाद 16 अप्रैल को कुछ सुधार के साथ यह अधिनियम बन गया। छठी बैठक में पशुओं के ऊपर हो रही क्रूरता के खिलाफ पहला गैर सरकारी विधेयक बिल 'प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल' को पं अयोध्या नाथ ने पटल पर रखा, जो पारित नहीं हो पाया। यह बात उल्लेखनीय है कि इस बिल के पक्ष में उस समय के अखबारों ने काफी कुछ लिखा था। विधान परिषद के गैर सरकारी सदस्य के रूप में 1888 में राजाराम पाल सिंह नामांकित हुए।

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आठ साल पहले भी लगा सदन

पब्लिक लाइब्रेरी में आठ साल पहले वर्ष आठ जनवरी, 2003 में उत्तरशती समारोह का आयोजन हुआ। इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती समेत के साथ पूरा सदन जुटा। इसकी अध्यक्षता तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी ने की थी। उद्घाटन तत्कालीन राज्यपाल आचार्य विष्णुकांत शास्त्री ने किया था।

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इतिहास में शुमार पब्लिक लाइब्रेरी

स्वतंत्रता आंदोलन सन 1857 में आगरा कॉलेज लाइब्रेरी के विनष्ट होने के बाद 1858 में तत्कालीन उत्तर-पश्चिम प्रांत की राजधानी आगरा से इलाहाबाद बनी। उस समय जन सामान्य के अवलोकनार्थ एक उपयुक्त संग्रह बनाने की आवश्यकता हुई। 27 अप्रैल 1864 में इसके लिए 3600 का बजट पास हुआ। वर्ष 1868 में इस पुस्तकालय की स्थापना के जनक बोर्ड आफ रेवन्यू के सदस्य स्व. सीबी थार्नहिल की याद में 'थार्नहिल मेमोरियल ट्रस्ट' की स्थापना हुई।

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लाल बहादुर शास्त्री ने दी 'आधुनिक त्रिवेणी' की संज्ञा

इलाहाबाद पब्लिक लाइब्रेरी का प्रथम शताब्दी समारोह 12 नवंबर 1964 को मनाया गया। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इलाहाबाद में स्थित विश्वविद्यालय, पब्लिक लाइब्रेरी एवं उच्च न्यायालय को शिक्षा, ज्ञान व न्याय के क्षेत्र में 'आधुनिक त्रिवेणी' की संज्ञा दी थी।

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आजादी के बाद से उपेक्षित ऐतिहासिक स्मारकों को जीवंत करने के लिए 2003 में पब्लिक लाइब्रेरी में सदन की बैठक कराई थी। इसके माध्यम से इलाहाबाद की राजनीति व पुरातात्विक गरिमा को जीवंत करने का प्रयास किया गया। मुख्यमंत्री मायावती ने उस समय कुछ घोषणाएं भी की थीं, जो अब तक पूरी नहीं हो सकीं।

-केसरीनाथ त्रिपाठी, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष।

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