इतिहास से जुड़ने को बेताब 'वर्तमान'
मनीष मिश्र, इलाहाबाद : वर्तमान और इतिहास में नजदीकियां बढ़ी हैं। नई पीढ़ी वाट्सएप व फेसबुक के साथ आज
मनीष मिश्र, इलाहाबाद : वर्तमान और इतिहास में नजदीकियां बढ़ी हैं। नई पीढ़ी वाट्सएप व फेसबुक के साथ आजादी के दीवानों से लेकर प्राचीन सभ्यता के बारे में भी जानना चाहती है। शायद यही कारण है कि पिछले कुछ सालों मे इलाहाबाद संग्रहालय आने वाले युवाओं की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। चाहे वह संग्रहालय में रखी आजाद की पिस्टल हो या गांधी स्मृति वाहन, हर चीज के बारे में युवाओं की उत्सुकता देखते ही बनती है।
इलाहाबाद संग्रहालय देश का चौथा व यूपी का पहला संग्रहालय है जहां अतीत को संजोया जाता है। यहां आने पर जहां महापुरुषों की स्मृति ताजा हो जाती है वहीं कई प्राचीन सभ्यताओं की जानकारी भी मिल जाती है। वैसे तो इतिहास की काफी जानकारी युवाओं को सोशल मीडिया के जरिए ही मिल जाती है। अधिक जानने की ललक उन्हें संग्रहालय तक खींच ला रही है। बीते कुछ वर्षो पर नजर डालें तो संग्रहालय आने वाले युवाओं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है।
------
क्या है यहां खास
-गांधी स्मृति वाहन, जिस पर महात्मा गांधी की अस्थियां संगम ले जायी गई थी।
-चंद्रशेखर आजाद की 32 बोर की पिस्तौल ।
-18वीं शताब्दी के बाद के कवच, पिस्तौल, ढाल व तलवार का संग्रह।
-चंद्रगुप्त द्वितीय की स्वर्ण मुद्रा व अकबर का मेहराबी सिक्का।
-हाथी दांत की बनी बनी रानी, जापानी महिला।
-भगवान शिव का पौराणिक दृश्य।
पं नेहरू ने पुन: शुरू कराया था संग्रहालय
वर्ष 1863 में राजस्व परिषद द्वारा उत्तर पश्चिम प्रांत की सरकार से एक पब्लिक लाइब्रेरी एवं एक संग्रहालय स्थापित करने की मांग की थी। इस पर प्रसिद्ध पुराशास्त्रीयविद सर विलियम म्योर और महाराजा विजयनगरम लाइब्रेरी व संग्रहालय के अधीक्षक नियुक्त किए गए। 1878 में इसके लिए आर्नेट भवन का उद्घाटन हुआ। 1881 में किसी कारण से यह बंद हो गया। 1923 में इलाहाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड के अध्यक्ष पं.जवाहर लाल नेहरू ने संग्रहालय को पुन: आरंभ कराया। 14 दिसंबर 1947 को प. नेहरू ने संग्रहालय क वर्तमान भवन का शिलान्यास किया था। 1954 में जनसामान्य के लिए इसे खोला गया।
एक नजर
वर्ष, युवा, बच्चे, विदेशी, कुल
2015-16, 57124, 16529, 150, 73803
2016-17, 58232, 34247, 129, 92608