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यहां तो कुटीर उद्योग बनी 'कच्ची'

संजय कुशवाहा, इलाहाबाद : कच्ची शराब बनाने का धंधा कछार से शुरू हुआ और गांव की गलियों तक फैल गया। कई

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 Apr 2017 07:00 PM (IST)Updated: Sat, 29 Apr 2017 07:00 PM (IST)
यहां तो कुटीर उद्योग बनी 'कच्ची'

संजय कुशवाहा, इलाहाबाद : कच्ची शराब बनाने का धंधा कछार से शुरू हुआ और गांव की गलियों तक फैल गया। कई गांव तो ऐसे हैं जहां ज्यादातर घरों में शराब बनाई जाती है। महिलाएं भी इसमें शामिल हैं। यह कहें कि इन गांवों में कच्ची शराब का धंधा कुटीर उद्योग बन गया है तो गलत नहीं होगा।

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सोरांव थाना क्षेत्र के बहमलपुर गांव की चर्चा प्रदेश स्तर पर होती है। इसके पीछे ठोस कारण भी है। गांव की पूरी एक बस्ती में जहां करीब पांच सौ परिवार रहते हैं, वह शराब के धंधे से जुड़े हैं। कई पुश्तों से लोग कच्ची शराब बनाते आए हैं। कुछ सूत्रों की मानें तो इन्हें शराब बनाने के अलावा कुछ और आता ही नहीं। गांव के बीचोंबीच बना तालाब धंधे का केंद्र है। धंधेबाज इसी तालाब में महुआ सड़ाते हैं। सुबह-शाम यहां मदिरा की मंडी सजती हैं जहां लोगों का जमावड़ा होता है। पुलिस और आबकारी विभाग के रहमोकरम पर दशकों से यही धंधा हो रहा है। कभी छापेमारी हुई भी तो वह सिर्फ खानापूर्ति तक ही सिमटी रहती है। गांव के लोग कहते हैं कि उनके भविष्य के बारे में जब सरकार को चिंता नहीं तो फिर उन्हें कैसे हो सकती है। गांव के कुछ बुजुर्गो की मानें तो बाप-दादा के जमाने से यही काम होता आया है। इसे छोड़कर तो वह भूखों मर जाएंगे।

गांव की तीन दर्जन विधवाएं जिनके पतियों की मौत इस अवैध कारोबार के चलते ही हुई, उनके सामने भी संकट है। एक साथ पांच सौ परिवारों के लिए रोजगार सृजित करना टेढ़ी खीर है। इसके अलावा गंगापार के गोहरी, मोरहू, रंगपुरा, हेतापट्टी, टिकरी, जगदीशपुर, माधोपुर पसियान आदि गांव में भी दिनरात शराब की भट्टियां धधकती रहती हैं।

यमुनापार में कच्ची शराब बनने में सबसे पहले अरैल का नाम आता है। आबकारी विभाग के अधिकारियों की मानें तो अरैल में बनी शराब जनपद के कई इलाकों में बिकती है। करीब एक हजार से ज्यादा परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। दो दशक पहले तक यहां का ज्यादातर कारोबार कछार में होता था, लेकिन माघ मेला व कुंभ जैसे आयोजनों से कछारी इलाका सुरक्षित नहीं रहा। नतीजा, लोगों ने घर में ही शराब बनानी शुरू कर दी। जानकारों की मानें तो अकेले अरैल में ही करीब 20 हजार लीटर कच्ची शराब रोज बनाई जाती है। यह शराब बाहर के जिलों में तो जाती ही है, गंगा पार दारागंज व झूंसी के इलाकों में भी बेची जाती है। कहते हैं कि अरैल की धाक के कारण झूंसी के कछार में बनने वाली शराब बंद हो गई। अब यहां भी अरैल में बनी शराब लाकर बेची जाती है। इसके आगे बढ़ने पर मवैया गांव पड़ता है। यहां भी कच्ची शराब का धंधा पुश्तैनी चला आ रहा है। डेढ़ दशक पहले इस गांव को गांधी ग्राम का दर्जा दिया गया था। गांधी जी मद्यपान के प्रबल विरोधी थे। अधिकारियों ने सोचा था कि गांधी ग्राम का दर्जा मिलने के बाद शायद लोगों की सोच बदले, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। कच्ची शराब यहां पहले भी बनती थी, आज भी बन रही है। करीब तीन सौ घर इस धंधे से जुड़े हुए हैं। इसी से कुछ दूर पर बसा है लवायन कला गांव। गंगा की धारा से करीब सौ फिट ऊंचाई पर बसा यह गांव प्राकृतिक रूप से काफी सुंदर नजर आता है। कहते हैं कि गंगा की लहरों ने गांव को करीब एक किलोमीटर पीछे ढकेल दिया है। बाढ़ के पानी से टकरा-टकराकर सैकड़ों घर गंगा की लहरों में समा चुके हैं। गांव का एक हिस्सा ऐसा है जहां घुसते ही महुए की गंध से सिर चकरा जाता है। बस्ती के ज्यादातर घरों के बाहर सूखने के लिए रखे गए महुए को देखकर समझा जा सकता है कि कच्ची शराब का धंधा कैसे इस गांव में कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है। गांव में धंधे की बागडोर ज्यादा महिलाओं ने संभाल रखी है। एक दशक पहले तक इस गांव में आपराधिक घटनाएं ज्यादा होती थीं। हालत ऐसी थी कि रात के समय पुलिस वाले भी गांव में घुसने से भय खाते थे।

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बांध रोड से पहुंचता है लहन

इलाहाबाद : दो दशक पहले तक अरैल, मवैया और लवायन कला गांव में शराब बनाने के लिए लहन मिर्जापुर मार्ग से गांव जाने वाली सड़कों से आता जाता था, लेकिन बांध रोड बन जाने से धंधेबाजों को बड़ी राहत मिली। बांध रोड से अरैल होते हुए मवैया और फिर लवायन कला जाना बहुत आसान हो गया है। छोटे वाहनों में लहन आता है जो अरैल में डिलेवरी करने के बाद मवैया और लवायन कला के लिए आगे बढ़ जाता है।

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बगीचों से लेकर नहर तक फैला जाल

गौहनिया, इलाहाबाद : यमुनापार के घूरपुर इलाके में दो दर्जन गांव ऐसे हैं जहां की 30 फीसद आबादी शराब के कारोबार से जुड़ी हुई है। बसवार, मोहद्दीनपुर, पालपुर, अमिलिया, चंपतपुर, बगबना, पिपिरसा, नीबी, बलापुर, बलीपुर, हथिगन, हथिगनी, घोघापुर, पतेवरा, पवर, पंवरी, चिल्ली, चकिया, ठनठनवा, कांटी, उभारी, बोंगी, मनकवार, कंजासा, बीकर, बीरबल, मोहनी का पूरा, भीटा आदि गांव ऐसे हैं जहां काफी संख्या में लोग घरों में कच्ची शराब बनाते हैं। धंधे में बगीचे से लेकर नहरों के आसपास की जगह भी प्रयोग की जाती है। धंधेबाजों का नेटवर्क ऐसा होता है कि उन्हें पुलिस की छापामारी की खबर पहले ही मिल जाती है। यही कारण है कि पुलिस जब मौके पर पहुंचती है तो फिर सिवाय भट्टियों व लहन के उसके हाथ कुछ नहीं लगता।

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फोटो

हथिगन में पुलिस का छापा, एक गिरफ्तार

-चार कुंतल लहन, दो दर्जन भट्ठियां नष्ट किया

-जागरण की खबर पर जारी है घूरपुर पुलिस का अभियान

गौहनिया, इलाहाबाद : कच्ची शराब के धंधेबाजों के खिलाफ घूरपुर पुलिस का अभियान लगातार दूसरे दिन भी जारी रहा। शनिवार को पुलिस ने हथिगन गांव में छापामारी कर वहां से एक व्यक्ति को शराब बनाते रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया। मौके से 40 लीटर तैयार शराब मिली जिसे जब्त कर लिया गया।

बीकर गांव में चल रही शराब फैक्ट्री की खबर व फोटो जागरण में छपने के बाद पुलिस व आबकारी विभाग हरकत में आ गया है। एसएसपी शलभ माथुर के आदेश पर इलाकाई पुलिस ने शुक्रवार को बीकर में अभियान चलाया था। वहां दो दर्जन भट्ठियां तोड़ी गई थीं। शनिवार को यह अभियान जारी रहा। एसआइ मनोज तिवारी के नेतृत्व में कांस्टेबिल विजेंद्र राय, रवीश चंद्र, जुबैर, सागर सिंह, नीरज कुमार आदि सुबह सात बजे ही हथिगन गांव पहुंच गए। पुलिस के अचानक वहां पहुंचने पर हड़कंप मच गया। धंधेबाज घर छोड़कर भाग निकले। पुलिस ने मौके से फूलचंद्र को पकड़ लिया। उसके घर से 40 लीटर तैयार शराब मिली। चार कुंतल लहन नष्ट कर दिया। दो दर्जन से ज्यादा भट्ठियां तोड़ डाली। पुलिस का कहना है कि फूलचंद्र पहले श्याम लाल का पूरा नैनी में रहता था। 10 साल पहले ही वह हथिगन आया था। यहां उसने शराब का धंधा शुरू किया। बाद में जब धंधा चमक गया तो वहां भी एक मकान बनवाकर परिवार के साथ रहने लगा। पुलिस की मानें तो अकेले फूलचंद्र ही रोज पांच सौ लीटर शराब बनाता है। थानाध्यक्ष घूरपुर बृजेश द्विवेदी ने बताया कि अवैध कच्ची शराब के खिलाफ पुलिस का अभियान लगातार जारी रहेगा।


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