..अब सिर्फ बाकी हरियाली के निशां
जासं, इलाहाबाद : इरादतगंज हवाई अड्डे की जमीन पर न सिर्फ अवैध रूप से कब्जे किए गए, बल्कि वहां मौजूद ह
जासं, इलाहाबाद : इरादतगंज हवाई अड्डे की जमीन पर न सिर्फ अवैध रूप से कब्जे किए गए, बल्कि वहां मौजूद हरियाली पर भी चोट पहुंचाई गई है। सैकड़ों हरे पेड़ काट डाले गए। पर्यावरण को अंगूठा दिखाते हुए भट्ठा संचालकों ने गांव से सटकर चिमनियों को बना डाला। कुछ चिमनियां तो आम के बाग में स्थापित हैं। न कोई रोकने वाला है न टोकने वाला। नियम कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। मिट्टी के अत्याधिक दोहन से कई गांवों की सूरत बिगड़ गई है।
इरादतगंज हवाई अड्डे के आसपास के गांवों में दर्जनों आम के बाग थे। हवाई अड्डे के निर्माण के बाद भी इसमें सैकड़ों पेड़ बचे हुए थे। हवाई अड्डे के बंद होने के बाद जब यहां अवैध कब्जे शुरू हुए तो उसका असर हरियाली पर भी पड़ा। पेड़ों को काटकर ईट भट्ठे स्थापित कर डाले गए। इसके बाद जो बचे, उन्हें मिट्टी निकालने के लिए काट डाला गया। हैरत की बात तो यह है कि ईट भट्टों की चिमनियां गांव के आसपास धधक रही हैं। इससे पर्यावरण तो प्रदूषित हो ही रहा है, लोगों की जिंदगी से भी खिलवाड़ किया जा रहा है।
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ईट भट्ठों ने बिगाड़ दी जमीन की सूरत
इलाहाबाद : जनपद व उसके आसपास के इलाकों में लगभग पांच सौ ईट भट्ठे हैं जहां हर सीजन में दस करोड़ से ज्यादा ईटों का निर्माण होता है। यह आंकड़ा अनुमानित है फिर भी डराने वाला है। इसमें कितने भट्ठों के पास पर्यावरण की मंजूरी है, यह सवाल भी उठता है। मिट्टी का अवैध खनन इनकी परंपरा बन गई है। शायद ही कोई भट्ठा हो, जहां मानकों का पालन किया जा रहा हो। अकेले यमुनापार में ही देखें तो सैकड़ों की संख्या में वहां मौजूद भट्ठों ने गांव की शक्ल बिगाड़कर रख दी है। यमुनापार के बोंगी, बिगहिया, हरिहरपुर, इरादतगंज, उभारी, चौखटा, मुरादपुर, पुरेखगन, अमिलिया, बसवार, बाबूपुर, बसवार, बलापुर, चकख्वाजा अली, नरसिंहपुर, देवरी आदि गांवों में तो ईट भट्ठों का जाल बिछा हुआ है। दूर से ही धुआं उगलती चिमनियां इनके साम्राज्य का दर्शन करा देती हैं। पास जाने पर जो नजारा दिखता है, उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। गांवों से सटे इलाकों में सिर्फ गड्ढे ही नजर आते हैं। समतल जमीन देखने को आंखें तरस जाती हैं। तीन फिट की मंजूरी लेकर ईट भट्ठा मालिकों ने पंद्रह से बीस फिट मिट्टी खोद डाली है। ऊबड़ खाबड़ इलाके को देखकर सहसा गांवों की खूबसूरती की परिकल्पना सपना जान पड़ती है। गंगापार के सोरांव, नवाबगंज, होलागढ़, मऊआइमा, बहरिया में भी ईट भट्ठे पर्यावरण नियमों को धता बताते हुए अवैध मिट्टी खनन में लगे हुए हैं।
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एनजीटी के नियमों की उड़ रही धज्जियां
इलाहाबाद : ईट भट्ठों द्वारा एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। पर्यावरण के मद्देनजर सुप्रीम और हाईकोर्ट ने भी गंभीर रुख अख्तियार किया हुआ, बावजूद इसके न तो मिट्टी का अवैध खनन रुक रहा है और न ही पेड़ कटने बंद हुए हैं। गांव से पांच सौ मीटर की दूरी पर ईट भट्ठों के होने का नियम भी लापरवाही की भेंट चढ़ गया है। बागों से दूर रहने को कौन कहे उसके बीचों बीच ईट भट्ठों की चिमनियां बना ली गई हैं। ज्यादातर भट्ठा मालिकों के पास पर्यावरण स्वच्छता प्रमाणपत्र भी नहीं है। बिना अनुमति के मिट्टी तो खोदी ही जा रही है चिमनियां धुआं उगल रही हैं सो अलग।
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हजारों पेड़ कट जाते हैं हर साल
इलाहाबाद : ईट पकाने के लिए हर साल हजारों हरे पेड़ों की कुर्बानी दे दी जाती है। खनन माफिया कोयले के साथ लकड़ी को ईधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। एक भट्ठे की चिमनी में एक सीजन में आठ से दस पेड़ काटकर झोंक दिए जाते हैं। जानकारों की मानें तो इस पूरे धंधे में सरकारी महकमा भी अहम रोल निभाता है। सबकी माहवारी बंधी होने के कारण न किसी को पर्यावरण की चिंता है और न ही हरियाली की।