एडिट--प्रेम में होनी चाहिए पवित्रता : रामभद्राचार्य
जासं, इलाहाबाद : तीर्थराज प्रयाग में संगम तट स्थित अक्षयवट श्रद्धा, भक्ति का केंद्र है। अक्षयवट क
जासं, इलाहाबाद : तीर्थराज प्रयाग में संगम तट स्थित अक्षयवट श्रद्धा, भक्ति का केंद्र है। अक्षयवट का वृक्ष केवट के समान है। जैसे केवट निषादराज प्रभु श्रीराम से प्रेम करके अक्षय हो गये। ठीक उसी प्रकार यह पवित्रतम् वृक्ष है। पद्मविभूषण जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने उक्त विचार व्यक्त किये। श्रीजगन्नाथ सेवक संघ की ओर से सेवा समिति विद्या मंदिर इंटर कालेज प्रांगण में आयोजित नौ दिवसीय श्रीरामकथा के छठे दिन मंगलवार को जगद्गुरु बोले, प्रभु अपने भक्तों पर कृपा करते ही हैं, बस प्रेम में पवित्रता होनी चाहिए।
बताया कि भगवान सिर्फ भक्त का प्रेम देखते हैं। इसी भाव से उन्होंने सबरी के जूठे बेर भी खाये। जगद्गुरु ने कहा कि प्रेम दिखाया नहीं जाता, अगर उसमें भाव है तो वह स्वत: दिख जाता है। प्रभु भक्त का भाव देख लेते हैं, इसलिए प्रभु प्रेम में कोई उद्देश्य नहीं होना चाहिए। भगवान खुद प्रेमी के पास जाते है। जबकि ज्ञानी भगवान के पास जाते हैं। सबरी, केवट इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं। केवट ने अनुरागवश भगवान के पैर धोकर पूरे परिजनों को चरणामृत पिलाया और उतराई में उसने कुछ नहीं लिया। इसलिये भगवान से कुछ मागना नहीं चाहिए।
कथा से पूर्व श्रेयसी माणिक ने मोहक भजन प्रस्तुत किया। कथा में संघ अध्यक्ष रामशकर तिवारी, मुख्य यजमान डॉ. माणिकलाल श्रीवास्तव, सावित्री श्रीवास्तव, डॉ. उमेश श्रीवास्तव, डॉ. विकास जायसवाल, हरिश्चंद्र सोनी, सुरेश पांडेय, वीके श्रीवास्तव, जितेंद्र मिश्र, सुशील सिंह, आरके सिन्हा, सुशील दुबे, जितेंद्र द्विवेदी मौजूद रहे।