Move to Jagran APP

सियासी इच्छाशक्ति की कमी से नागरिक संहिताएं अलग

अमरदीप भंट्ट, इलाहाबाद: भारत में समान नागरिक संहिता तभी लागू हो सकती है, जब इसे धर्म से अलग रखा जाए।

By Edited By: Published: Mon, 24 Oct 2016 07:46 PM (IST)Updated: Mon, 24 Oct 2016 07:46 PM (IST)
सियासी इच्छाशक्ति की कमी से नागरिक संहिताएं अलग

अमरदीप भंट्ट, इलाहाबाद: भारत में समान नागरिक संहिता तभी लागू हो सकती है, जब इसे धर्म से अलग रखा जाए। विभिन्न धर्म और जातियों के लोगों में हजारों साल पुरानी परंपराएं हैं। हां, इस दिशा में समुदायों को शिक्षित करने और बेहद व्यापक स्तर पर बहस से बात बन सकती है। सामान नागरिक संहिता लागू होने पर फायदे होंगे। कम से कम मामले सामने आएंगे जमीन व विवाह के। यह कहना था जाने-माने विधिवेत्ता और इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल कुमार तिवारी का। दैनिक जागरण कार्यालय में हुई सोमवारीय अकादमिक परिचर्चा में बतौर मुख्य वक्ता उन्होंने चर्चा के लिए तय एजेंडे 'आपराधिक संहिता समान तो नागरिक संहिता अलग क्यों' पर विस्तार से अपनी बात रखी और संपादकीय सहयोगियों की जिज्ञासाएं शांत की।

loksabha election banner

अतीत और वर्तमान का जिक्र

¨हदुस्तान का एक राष्ट्र के रूप में कंसेप्ट अर्से तक नहीं रहा। इसलिए यहां संहिता को लेकर बहुत ही लिबरल सिचुएशन थी। ब्रिटिश भारत में इस दिशा में पहल हुई। वारेन हेस्टिंग के समय 1772 में सामान नागरिक संहिता थी। सभी मानते थे। 1792 में लार्ड कार्नावालिस के समय बदलाव हुआ। यह ऐच्छिक कर दिया गया। क्रिमिनल ला तो बन गया, लेकिन नागरिक संहिता को लेकर तस्वीर अलग थी। वर्ष 1937 तक ऐसी ही स्थिति थी। लगभग एक सी नागरिक संहिता थी। दरअसल देश की पृष्ठभूमि ही कुछ ऐसी रही है। विभिन्न राज्यों और उनके अलग-अलग क्षेत्रों में विवाह, संपत्ति (उत्तराधिकार) को लेकर परंपराएं हैं। केरल में देखिए। नायर जाति में संपत्ति का बंटवारा घर की महिलाओं से शुरू होता है। गढ़वाल में बावर जाति में संपत्ति न बंटे इसलिए एक भाई की पत्नी को दूसरे भाई की पत्नी के रूप में समाज मान्यता देता है। पारसी समुदाय विलुप्त प्राय है। उसकी अपनी परंपराएं हैं। सामान नागरिक संहिता को लागू किए जाने से समुदाय व जाति विशेष की परंपराओं का क्या होगा, इस पर विचार किया जाना चाहिए।

धर्म आता है आड़े

धर्म और परंपराएं किसी के लिए भी अहम होती हैं। यह संवेदनशील मसला है। अंत्येष्टि और ब्रम्हभोज को ही ले लीजिए। पूर्वांचल में ही गोरखपुर में निधन के 12 वें दिन ब्रम्हभोज की परंपरा है और इलाहाबाद के आसपास त्रयोदशाह की। कहीं शव को अग्नि के हवाले करने के दिन से अगले कर्म की तारीख तय होती है, कहीं मृत्यु की तारीख से। जिस देश में कोस-कोस पर बानी और पानी बदलता हो वहां समान नागरिक संहिता आसान नहीं। हां, आपराधिक संहिता इसलिए आसानी से लागू करने में कामयाबी मिली क्योंकि उसे सभी ने मान लिया है। बहुसंख्यक वर्ग को पर्सनल लॉ में संशोधन से दिक्कत नहीं होती। अल्पसंख्यक तबकों को लगता है कि कहीं न कहीं उसके अधिकारों में अतिक्रमण हो रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय में बड़ा इश्यू विवाह और प्रापर्टी के उत्तराधिकार का मसला है। अंग्रेजों को सन 1937 में जब यह लगा कि उनका शासन भारत पर बहुत दिनों तक नहीं चल सकेगा तो उन्होंने शरीयत (इस्लामी कानून) को मुस्लिमों के पर्सनल ला के रूप में स्वीकार कर लिया। मकसद यह था कि भारत वासी विभाजित रहें। शाहबानो प्रकरण (1985) में शीर्ष अदालत का निर्णय अभूतपूर्व था, इस दिशा में, लेकिन राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में वह नहीं हो सका, जिसकी अपेक्षा की गई थी।

व्यापक बहस जरूरी

एक सी नागरिक संहिता के लिए व्यापक स्तर पर डिबेट की जरूरत है।

मीडिया इस मामले में अहम भूमिका अदा कर सकता है। सुखद यह है कि अब चर्चा शुरू हो गई हो। धीरे-धीरे माइंड सेट बदल रहा है। संपत्ति, उत्तराधिकार और विवाह ऐसे मुद्दे हैं जिस पर कुछ वर्ग समझौता करने को राजी नहीं हैं। जब सोसाइटी लिबरल हो जाएगी उस दिन यूनिफार्म कोड लागू हो जाएगा। यहां यह भी कहना चाहूंगा कि जब तक धर्म से सिविल राइटस को अलग नहीं करेंगे तक कामन सिविल कोड नहीं बन सकता। धर्म बड़ा मसला है। चर्चा लगभग घंटे भर चली। वरिष्ठ सहयोगी हरिशंकर मिश्र ने विषय प्रवर्तन किया।

-- वक्ता के बारे में

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की उपाधि करने के बाद यहीं से एलएलबी की उपाधि ली और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे। पूर्व में वह हाईकोर्ट बार के सचिव चुने गए थे। वह अपने जुझारू व्यक्तित्व के लिए जाने जाते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.