जागरूकता से ही मातृ-मृत्यु दर में आएगी कमी
जासं, इलाहाबाद : मातृ-मृत्यु दर में यूपी और उत्तराखंड की स्थिति अच्छी नहीं है, जबकि इस मामले में केर
जासं, इलाहाबाद : मातृ-मृत्यु दर में यूपी और उत्तराखंड की स्थिति अच्छी नहीं है, जबकि इस मामले में केरल और तमिलनाडु की स्थिति बेहतर है। यह बातें फॉक्सी इंडिया की पूर्व अध्यक्ष डॉ. हेमा दिवाकर ने ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनोकोलॉजिकल सोसाइटी द्वारा मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज के प्रेक्षागृह में शुक्रवार को शुरू हुए तीन दिवसीय सेमिनार 'सुरक्षित मां' में पहले दिन कहीं।
उन्होंने कहा कि मातृ- मृत्यु दर मामले में देश के कई क्षेत्रों में तरक्की तो कहीं स्थिति नाजुक बनी हुई है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में प्रतिदिन 800 स्त्रियां गर्भावस्था व प्रसव से संबंधित कारणों से दम तोड़ देती हैं। इनमें बीस प्रतिशत स्त्रियां भारतीय होती हैं। प्रति वर्ष हमारे देश में लगभग 55 हजार स्त्रियों की मृत्यु गर्भावस्था से संबंधित कारणों से होती है। इनमें वह महिलाएं ज्यादा शिकार होती हैं, जो सामाजिक व आर्थिक पिछडे़ वर्ग से होती है।
एसपीजीआइ लखनऊ की डा. मंदाकिनी प्रधान ने कहा कि कुछ अन्य कारण भी असुरक्षित प्रसव के होते हैं, जिसमें अतिरिक्त रक्तस्राव, संक्रमण, अनेमिया, पीलिया, मधुमेह, रक्तचाप आदि बीमारियों के कारण भी गर्भ धारण के बाद महिलाओं को मृत्यु का शिकार होना पड़ता है। बताया कि 23 अक्टूबर को संगम के रामघाट पर परिचर्चा का आयोजन किया गया है। इस दौरान समाज के विभिन्न वर्गो से मातृ-मृत्यु दर पर लगाम लगाने संबंधी विषय पर सुझाव भी मांगे जाएंगे। संस्था चेयरपर्सन डा. साधना गुप्ता ने कहा कि विभिन्न मोर्चो पर सुरक्षित मातृत्व को लेकर हर संभव कोशिश की जा रही है। यह भी कि मृत्यु का सीधा कारण प्रसूति रक्तस्राव से होता है, जबकि महिलाओं में खून की कमी भी एक बड़ा कारण बना हुआ है। इस मौके पर डा. रेनू दिवाकर, कमला नेहरू अस्पताल की डा. शुभा पांडेय, हिमालयन इंस्टीट्यूट देहरादून से डा. चंद्रा पंत, डा. परीक्षित टांक, डा. मंदाकिनी प्रधान, अभिलाषा चतुर्वेदी, डा. जया चतुर्वेदी, कविता अग्रवाल और डा. किरन पांडेय ने विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दिया।