सार्वजनिक शौचालयों में आगे, निजी में पीछे
जासं, इलाहाबाद: नगरीय क्षेत्र में खुले में शौच की आदत पर अंकुश लगाने के लिये नगर निगम ने कई सार्वजनि
जासं, इलाहाबाद: नगरीय क्षेत्र में खुले में शौच की आदत पर अंकुश लगाने के लिये नगर निगम ने कई सार्वजनिक व सामुदायिक शौचालय तो बनवाए, लेकिन शहर में निजी शौचालयों की कमी अब भी बनी है। यही बड़ी वजह है कि नगर निगम का मकसद अभी तक पूरी तरह सफल नहीं हो सका है।
सार्वजनिक व सामुदायिक शौचालयों के मामले में इलाहाबाद शहर में बेहतर काम हुआ है। आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2019 तक के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए गए थे, उससे कहीं ज्यादा शौचालय नगर निगम ने दो साल के भीतर ही बनवा लिए हैं। फिर भी शहर के कई इलाके अभी भी इससे वंचित हैं। जिनके लिए कार्ययोजना बनाई जा रही है। लेकिन निजी शौचालयों की बात करें तो शहर के हजारों घरों में शौचालय नहीं है। मलिन बस्तियों और झुग्गी झोपड़ियों वाले इलाकों में यह समस्या काफी अधिक है।
इन क्षेत्रों में सरकारी योजना के तहत निजी शौचालय बनवाने के जो प्रयास हुए हैं, वे काफी हद तक नाकाफी हैं। वर्ष 2014 से 2019 तक शहर के ऐसे भवनों में 11430 निजी शौचालय बनवाने का लक्ष्य रखा गया है। जिसमें आठ हजार रुपये का अनुदान दिया जाता है। जिसका आधा हिस्सा केंद्र सरकार और आधा राज्य सरकार वहन करती है। मगर अभी तक इस योजना के तहत महज 683 शौचालय बनवाने का काम ही शहर में हुआ है। इसमें भी सभी शौचालय अभी पूरे नहीं हो पाए हैं।
शहर में दो साल में बने शौचालय
शौचालय संख्या सीट 2019 तक लक्ष्य
निजी 683 683 11430
सामुदायिक 29 536 409
सार्वजनिक 50 992 834
कामयाब नहीं जागरूकता अभियान
नगर निगम खुले में शौच मुक्ति के लिए शहर में लगातार जागरूकता अभियान तो चला रहा है, स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिए लगातार बैठकें हो रही हैं। गली मोहल्लों में प्रचार किया जा रहा है। ट्रिग¨रग के तहत खुले में शौच जाने वालों को शर्मिदा करने के लिए माला पहनाने जैसे अभियान भी चलाए गए। इसके बावजूद खुले में शौच का सिलसिला बंद नहीं हुआ। यहां तक कि खुले में शौच जाने वाले सार्वजनिक या सामुदायिक शौचालयों का इस्तेमाल करने से भी कतराते हैं। मोहल्ले में तीस रुपये मासिक का कार्ड बनवाने भी में लोग रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
रखरखाव बेहद मुश्किल
शहर में सामुदायिक शौचालयों में रखरखाव का बेहतर इंतजाम नहीं है। जो कर्मचारी यहां रखे जाते हैं, उनका खर्च और साफ सफाई का खर्च न निकलने के कारण ये शौचालय शहर के अधिकांश हिस्सों में बेहाल हैं। कुलभाष्कर आश्रम के सामने बने सामुदायिक शौचालय पर तो विवाद के कारण ताला लटक गया है। शहर में नवल राय तालाब स्थित सामुदायिक शौचालय का संचालन करने वाले युवक ने बताया कि उनका खर्च भी नहीं निकल पाता है।
टोटी भी निकाल लेते हैं लोग
शहर में ओडीएफ जागरूकता की कमान संभाल रहे नेशनल गंगा रीवर बेसिन (एनजीआरबी) के सहायक परियोजना निदेशक कहते हैं कि सामुदायिक शौचालयों के रखरखाव की समस्या बहुत बड़ी है। यहां रहने वाले कर्मचारियों का वेतन तक नहीं निकल पाता। इसके लिए अलग से बजट का इंतजाम भी नहीं है। इसके अलावा मोबाइल ट्वायलेट ले जाओ तो लोग उसका दुरुपयोग कर डालते हैं। उसमें लगी टोटी तक निकाल लेते हैं। उसमें कर्मचारी तैनात करना भी संभव नहीं है।