एक साल से कारगिल शहीद के पिता की पेंशन बंद
करछना, इलाहाबाद: शहीदों के नाम पर लंबे चौड़े वादे करने वाले नेता-अफसर चंद सालों में ही उन्हें भुला दे
करछना, इलाहाबाद: शहीदों के नाम पर लंबे चौड़े वादे करने वाले नेता-अफसर चंद सालों में ही उन्हें भुला देते हैं। करछना के पतुलिकी गांव में कारगिल शहीद के घर जाकर तो यही हकीकत जाहिर होती है। शहीद के पिता की पेंशन करीब एक साल से बंद है और कोई अफसर उनसे पूछने तक नहीं आया। गांव में शहीद के नाम से बनी सड़क की बदहाली भी ब्यूरोक्रेसी की उपेक्षा की तस्वीर पेश करती है।
करछना का यह गांव अचानक उस वक्त सुर्खियों में आ गया था, जब 1999 में कारागिल युद्ध के दौरान गांव के लाल मणि यादव शहीद हो गए थे। गांव में नेताओं और अफसरों का तांता लग गया था। लंबे चौड़े दावे हुए थे शहीद की यादों को सहेजने के लिए। पत्नी को एक पेट्रोल पंप दिया गया था और वे अपने बच्चों के साथ नैनी के एडीए कालोनी में शिफ्ट हो गई। गांव में शहीद के नाम से एक सड़क भी बनवाई गई और शहीद के पिता को पांच हजार की पेंशन भी सैनिक कल्याण पुनर्वास बोर्ड की ओर से मिलना शुरू हो गई। 17 साल बाद कारगिल विजय दिवस के मौके पर जब 'दैनिक जागरण' के संवाददाता ने शहीद के पिता से मुलाकात की तो सरकारी उपेक्षा की कहानी सामने आई। 98 वर्षीय पिता सूर्यदीन यादव कहते हैं कि पांच हजार पेंशन मिलती थी, पिछले करीब एक साल से पेंशन बंद हो गई। उन्होंने बोर्ड में शिकायत की तो एक अधिकारी ने कहा कि क्या जीवन भर पेंशन मिलती रहेगी। हालांकि वे कहते हैं कि उन्हें इस बात की शिकायत नहीं है, उन्हें बेटे की शहादत पर फक्र है, लेकिन उसके नाम से गांव में बनी सड़क भी बदहाल पड़ी है। गहरे गड्ढे हैं, कम से कम इस सड़क का ख्याल तो सरकार को रखना ही चाहिए था।
'कारगिल शहीद के पिता की पेंशन कैसे बंद हो गई है। इस बारे में जानकारी जुटाई जाएगी। इसके अलावा शहीद के नाम की सड़क भी दुरुस्त कराई जाएगी।'
महेंद्र कुमार राय, एडीएम प्रशासन
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विजय दिवस बहिष्कार करेगा कारगिल शहीद का परिवार
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद न रुकने से शहीद की पत्नी खफा
कहा, जाया हो रही कुर्बानी, मुआवजे से नहीं खत्म होगा आतंकवाद
नैनी, इलाहाबाद: 'पाकिस्तान आतंकियों को शह दे रहा है। रोज आतंकी हमलों में जवान शहीद हो रहे हैं। आतंकियों से निपटने के लिए सरकार के पास अभी तक कोई ठोस नीति नहीं है। बस, शहीदों के परिजनों को मुआवजा देकर चंद आंसू बहा दिये जाते हैं। मगर इससे जवानों की शहादत बंद नहीं होगी।' आक्रोश, क्षोभ और गुस्से से भरे ये शब्द हैं कारगिल शहीद नायक लालमणि यादव की पत्नी के। वे सरकारी नीतियों से इस कदर आहत हैं कि इस बार कारगिल विजय दिवस के बहिष्कार का निर्णय ले लिया है।
नैनी की एडीए कालोनी में कारगिल शहीद लालमणि यादव का परिवार रहता है। परिवार में पत्नी संतोष देवी, दो बेटे और एक बेटी हैं। सरकार ने इस परिवार को मुआवजा तो पूरा दे दिया है। सारी मांगें भी पूरी कर दी हैं, लेकिन शहीद की पत्नी का दिल खून के आंसू रो पड़ता है जब वे समाचार में किसी जवान के शहीद होने की खबर सुनती हैं। वे कहती हैं कि विजय दिवस का मकसद तभी कामयाब होगा, जब आतंकवाद और पाकिस्तान पर नियंत्रण हो जाए। इसके लिए केंद्र सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। लेकिन जवान के शहीद होने पर सिर्फ एक ही बार वीआइपी व नेता उनके चौखट पर दस्तक देकर परिजनों के आंसू पोंछ कर चले जाते हैं। फिर उन्हें ये कुर्बानी याद नहीं रहती। एडीए के अपने मकान में मौजूद संतोष देवी कहती हैं कि इसीलिए वे और उनके बच्चे इस बार 26 जुलाई को होने वाले कारगिल विजय दिवस में भाग नहीं लेंगी।
38 वर्ष की उम्र में हुए थे शहीद
नैनी : मूल रूप से करछना के पतुलकी गांव के रहने वाले लालमणि यादव सेना की कुमाऊं रेजीमेंट में नायक के पद पर तैनात थे। कारगिल युद्ध के दौरान घुसपैठियों से मुकाबला करते हुए उन्हें वीरगति प्राप्त हुई थी। उस वक्त उनकी उम्र महज 38 वर्ष थी।