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¨हदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हैं इकबाल चाचा

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : संगम नगरी के रहने वाले 65 वर्षीय इकबाल चाचा हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल

By Edited By: Published: Thu, 08 Oct 2015 01:00 AM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2015 01:00 AM (IST)
¨हदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हैं इकबाल चाचा

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : संगम नगरी के रहने वाले 65 वर्षीय इकबाल चाचा हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल हैं। पांच वक्त के नमाजी इकबाल मियां रामलीला में केवट का किरदार निभाते हैं। इकबाल मियां 20 साल से दारागंज और श्रीपथरचट्टी की रामलीला से जुड़े हैं। केवट बनकर राम भक्ति का भावपूर्ण मंचन करते हैं।

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तमाम शहरों में मामूली बातों पर झगड़ने वाले हिन्दू और मुसलमानों को इकबाल चाचा से सीखना चाहिए। करेली के रहने वाले सैयद इकबाल अहमद का बचपन दारागंज में गुजरा। जवानी के दिनों ने रंगमंच से जुड़ गए। उनकी आवाज अच्छी थी तो रेडियो में सेलेक्शन हो गया। करीब 20 साल पहले उनके कई साथी रामलीला में मंचन करने लगे तो वह भी रामलीला से जुड़ गए। फिर तो रामलीला में वह रम गए। कई साल तक दारागंज की रामलीला से जुड़े रहने के बाद तीन साल से पथरचट्टी रामलीला में केवट की भूमिका निभा रहे हैं। रामलीला में भले ही उनका आधे घंटे का मंचन है लेकिन इसमें ही वह अपनी छाप छोड़ जाते हैं। इकबाल मियां बताते हैं कि उन्हें केवट किरदार के संवाद अच्छी तरह याद हैं, वह कहते हैं जब गंगा नदी पार कराने के बाद भगवान राम केवट को उतराई में अंगूठी देते हैं और केवट उसे लेने से यह कहकर इंकार कर देते हैं कि आप तो सभी को भव सागर पार कराते हैं मैंने तो आपको सिर्फ नदी पार कराया, हुए तो दोनों केवट ही। एक केवट दूसरे से कैसे उतराई ले सकता है। इस मंचन और संवाद पर दर्शक भावुक हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि पांचों वक्त की नमाज पढ़ता हूं और भगवान राम की भक्ति का मंचन भी करता हूं। कभी दोनों धर्मो में विभेद नहीं लगा। अगर लोग धर्म के मर्म को जान लें तो कभी झगड़े नहीं होंगे। रामलीला मंचन के अलावा उन्होंने काशी के अस्सी सहित कई फिल्मों व दूरदर्शन के धारावाहिकों में भी काम किया है।


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