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अक्सर विवादों में रहा महामंडेलश्वर पद

जासं, इलाहाबाद : सच्चिदानंद गिरि से पहले भी अखाड़ों में महामंडलेश्वर का पद विवादित रहा है। हर अखाड़ा अ

By Edited By: Published: Tue, 04 Aug 2015 01:01 AM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2015 01:01 AM (IST)
अक्सर विवादों में रहा महामंडेलश्वर पद

जासं, इलाहाबाद : सच्चिदानंद गिरि से पहले भी अखाड़ों में महामंडलेश्वर का पद विवादित रहा है। हर अखाड़ा अपनी सुविधा अनुसार महामंडलेश्वर की पदवी देता रहा है। विवादों में आए पायलट बाबा, राधे मां, अर्जुन पुरी जैसे बाबाओं से महामंडलेश्वरों का पद छीन लिया गया था जबकि कुछ ऐसे भी हैं जो आज भी पूरे ठाठ-बाट से अपना काम कर रहे हैं।

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मालेगांव बम ब्लास्ट की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को प्रयाग में वर्ष 2007 के अ‌र्द्धकुंभ में जूना अखाड़ा के आचार्य पीठाधीश्वर अवधेशानंद ने अपने शिविर में संन्यास की दीक्षा दी। महामंडलेश्वर बनाने की तैयारी थी, लेकिन अखाड़ा के कुछ महंतों के विरोध के चलते पद नहीं मिला। वहीं जनवरी 2013 में राधे मां का हरिद्वार में जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर पद पर पट्टाभिषेक हुआ। वह प्रयाग कुंभ पर्व में शामिल होने की तैयारी में थीं कि उसी बीच उनके शादी-शुदा होने, स्वयं के देवी बताने एवं घर गृहस्थी से जुड़ी होने पर बखेड़ा खड़ा हो गया। इसके बाद अखाड़ा ने उनसे पद वापस ले लिया। इसी कुंभ पर्व में जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर पायलट बाबा व अर्जुन पुरी ने अलग-अलग अखाड़ा के 40 महामंलेश्वरों को लेकर महामंडलेश्वरर परिषद का गठन कर दिया। इस पर उन्हें अखाड़ा से बर्खास्त कर दिया गया। साथ ही मौनी अमावस्या के प्रमुख शाही स्नान में शामिल नहीं होने दिया गया। सेक्स स्कैंडल में फंसे स्वामी नित्यानंद को 2013 कुंभ पर्व में महानिर्वाणी अखाड़ा का महामंडलेश्वर बनने का मामला भी विवादित रहा।

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महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया

आदिगुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा एवं प्रचार-प्रसार के लिए अखाड़ों की स्थापना की। अखाड़ा को संचालित करने के लिए एक आचार्य पीठाधीश्वर होते हैं। इनके अंतर्गत कई महामंडेश्वर व मंडलेश्वर होते हैं। अखाड़ा के नागा संन्यासी महामंडेलश्वर के सानिध्य में रहकर सनातन धर्म के हित में कार्य करते हैं। महामंडेलश्वर बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन है। संन्यासी जिस अखाड़े का महामंडलेश्वर बनते हैं उससे कम से कम 10 वर्ष का जुड़ाव होना चाहिए। धर्मशास्त्र का ज्ञाता, निर्विवाद एवं सनातन धर्म के प्रति उसका समर्पण परखकर ही महामंडलेश्वर की पदवी दी जाती है। महामंडलेश्वर बनाने का फैसला अखाड़ा के आचार्य एवं पंच परमेश्वर लेते हैं। सामूहिक निर्णय के बाद ही पट्टाभिषेक किया जाता है।

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क्यों बनते हैं महामंडेलश्वर

कुंभ पर्व में होने वाली पेशवाई व शाही स्नान में अखाड़ा के आचार्य पीठाधीश्वर के साथ महामंडलेश्वर रथ पर सवार होकर निकलते हैं। चांदी के सिंहासन में विराजमान होकर रत्‍‌न जड़ित छत्र उनकी शोभा बढ़ाती है। कुंभ स्थलों पर महामंडलेश्वर के लिए अलग से शिविर की व्यवस्था होती है। प्रशासन उनका विशेष ध्यान रखते हुए सुरक्षा व्यवस्था भी मुहैया कराते हैं।


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