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महामंडलेश्वर सच्चिदानंद की पदवी जांच के दायरे में

जासं, इलाहाबाद : संतों की तपोभूमि तीर्थराज प्रयाग एक बार फिर चर्चा में है, संतों के ही बीच। शुक्रवार

By Edited By: Published: Sun, 02 Aug 2015 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2015 01:00 AM (IST)

जासं, इलाहाबाद : संतों की तपोभूमि तीर्थराज प्रयाग एक बार फिर चर्चा में है, संतों के ही बीच। शुक्रवार को यहां महामंडलेश्वर की पदवी पाने वाले सच्चिदानंद पर उंगली उठने के बाद अखाड़ा परिषद ने उनसे जुड़े तथ्यों की पड़ताल का फैसला लिया है। परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने दैनिक जागरण से कहा कि यदि मीडिया के किसी भी वर्ग में उंगली उठाई गई है तो मामले की जांच कराई जाएगी। यदि सच्चिदानंद के बारे में आपत्तिजनक बात सामने आती है तो उनकी पदवी वापस ले ली जाएगी।

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बताते चलें कि हेलीकाप्टर से पुष्पवर्षा के बीच गुरु पूर्णिमा पर सच्चिदानंद गिरि का महामंडलेश्वर पद पर पट्टाभिषेक हुआ था। मठ बाघंबरी गद्दी प्रांगण में संपन्न पट्टाभिषेक समारोह भव्यता लिया हुए था। इसमें संत-महात्माओं संग प्रदेश के काबीना मंत्री शिवपाल सिंह यादव और पर्यटन मंत्री ओमप्रकाश सिंह भी मौजूद थे। बताया जाता है कि मूल रूप से गाजियाबाद निवासी सचिन, अग्नि अखाड़ा के महामंडलेश्वर कैलाशानंद से पिछले 20- 22 साल से जुड़े हैं। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि कहते हैं कि कैलाशानंद के सानिध्य में उन्होंने संन्यास लिया था और उनका नाम सच्चिदानंद ब्रह्माचारी पड़ा। कैलाशानंद की अनुसंशा से ही उन्हें निरंजनी अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया गया। बकौल नरेंद्र गिरि, यदि सच्चिदानंद ने संन्यास धर्म ग्रहण करने के बाद घर परिवार तथा व्यवसाय से खुद को अलग कर लिया है तो उनके मनोनयन में कहीं कोई दिक्कत नहीं है। फिर भी यदि कोई ऐसी बात सामने आती है जो संत समाज की प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं हुई तो पदवी वापस लेकर उन्हें अखाड़े से बाहर कर दिया जाएगा। सच्चिदानंद के बारे में यह तथ्य सामने आया है कि उनका नोएडा में बार है। नरेंद्र गिरि का कहना है कि यदि बार उनके परिवार के लोग चलाते हैं तो इसमें सच्चिदानंद कहां से दोषी हो जाएंगे। संत का घर-परिवार से कोई संबंध नहीं रह जाता है।

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महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया

अखाड़ों में महामंडेलश्वर बनाने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन है। संन्यासी जिस अखाड़े का महामंडलेश्वर बनते हैं उससे कम से कम दस वर्ष का जुड़ाव होना चाहिए। धर्मशास्त्र का ज्ञान, निर्विवाद एवं सनातन धर्म के प्रति समर्पण को परखकर ही अखाड़ा के महामंडलेश्वर की पदवी दी जाती है।

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क्यूं बनते हैं महामंडेलश्वर

कुंभ पर्व में होने वाली पेशवाई व शाही स्नान में अखाड़ा के आचार्य पीठाधीश्वर के साथ महामंडलेश्वर रथ पर सवार होकर निकलते हैं। चांदी के सिंहासन में विराजमान होकर रत्‍‌न जड़ित छत्र उनकी शोभा बढ़ाती है। कुंभ स्थलों पर महामंडलेश्वर के लिए अलग से शिविर की व्यवस्था होती है। प्रशासन उनका विशेष ध्यान रखते हुए सुरक्षा व्यवस्था भी मुहैया कराता है।


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