दुख भरे दिन बीतेंगे रे भैय्या.
धर्मेश अवस्थी, इलाहाबाद : साल भर से हम आप अचरज में हैं, अतिवृष्टि के कारण। जाड़ा हो या गर्मी की शुरुआ
धर्मेश अवस्थी, इलाहाबाद : साल भर से हम आप अचरज में हैं, अतिवृष्टि के कारण। जाड़ा हो या गर्मी की शुरुआत, आसमान पर छाने वाले बदरा ऐसा बरसे, जैसे सावन हो। क्या गांव क्या शहर, हर जगह बर्बादी। ऐसी विपदा आन पड़ी है कि किसान साल भर अपना और अपने परिवार का पेट पाल ले, गनीमत होगी। खैर, जो हुआ सो हुआ। आगे की चिंता फिलहाल नहीं करनी चाहिए। इसका आधार है ज्योतिषीय आकलन। मौसम का मिजाज जून से 'सौम्य' संवत्सर की वजह से सौम्य हो जाएगा।
ईश्वर शरण महाविद्यालय इलाहाबाद के संस्कृत विभागाध्यक्ष व प्रख्यात ज्योतिर्विद डा. गिरिजा शंकर शास्त्री ने 'दैनिक जागरण' को बताया कि 'कीलक' नामक संवत्सर के कारण मौसम का मिजाज बिगड़ा है। इससे किसानी चौपट हुई। बकौल डा. शास्त्री, 'आम धारणा यह है कि संवत्सर चैत्र मास की प्रतिपदा से शुरू होकर वर्ष पर्यत रहता है। वर्ष भर चैत्र की प्रतिपदा वाले संवत्सर का ही संकल्प लिया जाता है, लेकिन संवत्सर का बदलाव हर साल मई-जून मास में होता है।'
उन्होंने जानकारी दी कि ज्योतिष शास्त्र की गणना के अनुसार कुल 60 संवत्सर होते हैं। हर संवत्सर का फल उनके नामानुसार उसी वर्ष में होता है। 'कीलक' नामक संवत्सर आठ जून 2014 से शुरू होकर 28 मई 2015 तक प्रभावी रहेगा। डॉ. शास्त्री इस सिलसिले में यह श्लोक उद्धृत करते हैं -'कीलकाब्देत्वीति भीतिश्च प्रजा क्षोभनृपाहृयौ'। अर्थात कीलक संवत्सर में ईति का भय होता है। दैवीय आपदाओं से प्रजा दुखी होती है और शासकों में तनातनी बनी रहती है। ईति का अर्थ है खेती को हानि पहुंचाने वाले उपद्रव। ज्योतिष के लिहाज से खेती को हानि पहुंचाने वाले छह उपद्रवों का जिक्र डा. शास्त्री करते हैं। इसे उन्होंने इस श्लोक 'अतिवृष्टिरनावृष्टिर्मूषका: शलभा: शुका:, प्रत्यासन्नाश्च राजान: षडेता ईतय: स्मृता:' से स्पष्ट किया। इस श्लोक के मुताबिक ईति का मतलब है अतिवृष्टि, अनावृष्टि, टिड्डियों के झुंडों का फसलों को नुकसान पहुंचाना, चूहों की अधिकता, पक्षियों से कृषि की हानि तथा राजाओं के अन्य देश पर आक्रमण करने से कृषि का विनाश। डा. शास्त्री के अनुसार आधिदैविक कष्ट के अंतर्गत प्राकृतिक उत्पात, भूकंपादि, आंधी-तूफान, असमय वर्षा, वज्रपात, अत्यधिक गर्मी और सर्दी पड़ती है।
उन्होंने बताया कि आगामी 28 मई 2015 को सौम्य नामक संवत्सर शुरू होगा, जो वर्ष पर्यत चलेगा। तब पहले से चले आ रहे उत्पात यानी कृषि कार्य की क्षति की भरपाई हो जाएगी। इसे वह इस श्लोक से साफ करते हैं- 'सौम्याब्दे निखिलालोका बहुसस्यार्घवृष्टिभि:' यानी शुभता की वृद्धि होगी। कहते हैं बारिश सामान्य होगी और भरपूर फसल पैदा होगी। अन्न की वृद्धि, धन धान्य की समृद्धता बढ़ेगी और लोग सुखी हो जाएंगे। डॉ. शास्त्री बताते हैं कि संवत्सर और उसके प्रभावों का उल्लेख मयूर चित्रकम, वर्ष प्रबोध, संवत्सरावली एवं कृषि पाराशर जैसी सैकड़ों वर्ष पुरानी पुस्तकों में है।