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'शिक्षा को मूल अधिकार बनाने में लगी देर'

जासं, इलाहाबाद : हर स्तर पर नैतिक शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए, क्योंकि मौजूदा शिक्षा में इं

By Edited By: Published: Sun, 29 Mar 2015 01:01 AM (IST)Updated: Sun, 29 Mar 2015 01:01 AM (IST)

जासं, इलाहाबाद : हर स्तर पर नैतिक शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए, क्योंकि मौजूदा शिक्षा में इंसान बनने का उद्देश्य कहीं गायब हो गया है। शिक्षा मनुष्य के विचारों को बदल देती है और इंसानियत का भाव शिक्षा से ही जागृत होता है। शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार बनाने में काफी देर लगी। यह बात उच्च न्यायालय इलाहाबाद के न्यायमूर्ति अरुण टंडन ने कही। वह उप्र राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय की ओर से 'दूरस्थ एवं मुक्त शिक्षा पद्धति के माध्यम से समावेशी शिक्षा का उर्जवीकरण' राष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित कर रहे थे।

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कुलपति प्रो. एमपी दुबे ने कहा कि पश्चिम में जिन मूल्यों को किनारे कर दिया गया उन्हीं मूल्यों को हम अपना रहे हैं। हमें ऐसी शिक्षा पद्धति को बदलना होगा। हमारी शिक्षा प्रणाली मनोविज्ञान, दर्शन आदि के सिद्धांतों से भरी पड़ी है। हमें इस दिशा में तरक्की करनी चाहिए। भारतीय पुनर्वास परिषद नई दिल्ली के पूर्व सदस्य सचिव डा. जेपी सिंह ने कहा कि शिक्षक गुणवत्ता बढ़ाना समावेशन के लिए आवश्यक है। वास्तव में शिक्षा समानता लाने का माध्यम है, जबकि परिवेश इसके विपरीत है। स्वागत सेमिनार के समन्वयक प्रो. एसपी गुप्ता ने किया। संयोजक डा. दिनेश सिंह ने विषय वस्तु की जानकारी दी। संचालन डा. प्रदीप कुमार पांडेय एवं धन्यवाद ज्ञापन डा. शैलेश कुमार यादव ने किया। यहां प्रो. सुषमा शर्मा, प्रो. वाईपी अग्रवाल, प्रो. एसएस जेना, पीके शाहू, प्रो. धनंजय यादव, प्रो. सुजाता रघुवंश आदि मौजूद थे।


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