'अर्थ ऑवर डे' की जानकारी ही नहीं
जासं,इलाहाबाद : इसे पर्यावरण संरक्षण के प्रति अफसरों और शहरियों की उदासीनता कहें अथवा जानकर भी अनजान
जासं,इलाहाबाद : इसे पर्यावरण संरक्षण के प्रति अफसरों और शहरियों की उदासीनता कहें अथवा जानकर भी अनजान बने रहने की प्रवृत्ति। कम से कम अर्थ ऑवर डे पर अफसरों और लोगों के रुख को देखकर तो ऐसा ही लगा। पर्यावरण को बचाने के लिए संगमनगरी में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई दी।
रात में 8.30 से 9.30 बजे के बीच न सरकारी दफ्तरों की बत्ती बुझी और न ही घरों में लोगों ने बल्ब और ट्यूब राड को बंद करना मुनासिब समझा। पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों में अलख जगाने के प्रति प्रोत्साहित और प्रेरित करने के लिए एक वैश्रि्वक आंदोलन के रूप में हर वर्ष मार्च के आखिरी शनिवार को अर्थ ऑवर डे मनाया जाता है। इस अभियान के तहत रात 8.30 से 9.30 बजे तक अर्थ ऑवर डे सुनिश्चित किया गया था। इसका तात्पर्य यह था कि लोग घरों, कमरों अथवा गैर जरूरी बत्तियों को बुझाकर पर्यावरण संरक्षण में अपनी हिस्सेदारी दे सकते हैं। मगर शहर में इसका क्या असर रहा, इसे परखने के लिए शनिवार रात जागरण टीम निकली, तो चौंकाने वाली तस्वीर देखने को मिली। न कलेक्ट्रेट में किसी कोने में हाईमॉस्ट, ट्यूब राड एवं बल्ब बुझे मिले न ही विकास भवन में किसी कोने में अर्थ ऑवर डे का पालन हुआ दिखा। सिविल लाइंस में भी यही आलम रहा। इंदिरा भवन दूर से ही जगमग-जगमग करता रहा। पूरी बिल्डिंग में अंधेरा उसी जगह रहा, जहां बिजली की व्यवस्था नहीं थी। शहर के अन्य हिस्सों में भी यही हाल रहा।