सच्चे गुरु थे प्रो.सतीशचंद्र देब : अमर
इलाहाबाद : शिष्यों की भावना व समझ के अनुरूप ज्ञान देने वाला ही सच्चा गुरु होता है। प्रो. देब ऐसे ही
इलाहाबाद : शिष्यों की भावना व समझ के अनुरूप ज्ञान देने वाला ही सच्चा गुरु होता है। प्रो. देब ऐसे ही गुरु थे जो अपने शिष्यों के मन में आंदोलन पैदा करते थे। बेबाकी, ज्ञान की गहनता और शिष्यों को अपराजेय देखना उनका अभीष्ट था। उक्त विचार प्रो.अमर सिंह ने व्यक्त किए। बुधवार को वह इलाहाबाद संग्रहालय में अपने गुरु प्रोफेसर सतीशचंद्र देब स्मृति व्याख्यानमाला में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। कहा कि प्रो. देब एमए की कक्षा में हमें अंग्रेजी नाटक पढ़ाते थे। इस दौरान पूरब और पश्चिम की साहित्यिक बारीकियों के अंतर को खूबसूरती से समझाया। वह प्रसाद के आनंद की तुलना पश्चिम के द टेम्पेस्ट तथा महादेवी की तुलना टेनिसन से करते थे। इस प्रकार भौतिकता और आध्यात्मिकता, दुखांत और सुखांत का भेद स्पष्ट करते थे। अध्यक्षता कर रहे उर्दू लेखक शम्सुर्रहमान फारूकी ने प्रो. देब को कई भाषाओं का जानकार और चमत्कारिक व्यक्तित्व का धनी बताया। संग्रहालय के निदेशक राजेश पुरोहित ने अतिथियों का स्वागत, संचालन एवं संयोजन डॉ. राजेश मिश्र व आभार डॉ. सुनील गुप्त ने ज्ञापित किया। कार्यक्रम में प्रो. एसके सेठ, प्रो. मानस मुकुल, प्रो. रामलाल, प्रो. एए फातमी, डॉ. फाजिल हासमी, रविनंदन सिंह आदि मौजूद थे।