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कभी थी सूखे की मार, अब खुशियों की बौछार

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : 'जिंदगी जीना आसान नहीं होता, बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता। जब तक ना पड़

By Edited By: Published: Wed, 28 Jan 2015 08:50 PM (IST)Updated: Thu, 29 Jan 2015 05:23 AM (IST)
कभी थी सूखे की मार, अब खुशियों की बौछार

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : 'जिंदगी जीना आसान नहीं होता, बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता। जब तक ना पड़े हथौड़े की मार, तब तक तो पत्थर भी भगवान नहीं होता।' ये वो चंद लाइनें हैं, जिसके बल पर मोती लाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआइटी) के असिस्टेंट प्रोफेसर डा.हेमंत कुमार पांडेय ने हजारों की जिंदगी में खुशियों की बौछार कर दी, जहां कभी सूखे की मार हुआ करती थी। उन्होंने बतौर वैज्ञानिक बुंदेलखंड, सोनभद्र और इलाहाबाद जनपद के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल संचयन के लिए रेन वाटर हारवेस्टिंग योजना की शुरुआत की।

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डॉ.हेमंत पांडेय वर्ष 1997 में भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत थे। यहीं से अपने जीवन को आमजन के लिए समर्पित करने का मन बना लिया। यह वह दौर था जब लोगों को भविष्य में जल संकट होने की चिंता सताने लगी थी। डा.हेमंत ने संगम नगरी से ही इस संकट से लड़ने का निश्चय किया और वर्षा जल संचयन योजना शुरु की। वर्ष 2002 में पहली बार इलाहाबाद के विकास भवन और चौफटका स्थित अंबेडकर विहार में वर्षा जल संचयन का मॉडल तैयार किया गया। इसके बाद इलाहाबाद विकास प्राधिकरण ने 12 अन्य मॉडल तैयार करवाए। वर्ष 2012 में डॉ.हेमंत ने वैज्ञानिकों की नई पौध तैयार करने का मन बनाया और एमएनएनआइटी में असिस्टेंट प्रोफेसर का कार्यभार संभाल लिया। वर्ष 2013 में डा.हेमंत ने इलाहाबाद और कानपुर में जल संकट को देखते हुए एक मास्टर प्लान तैयार कर उत्तर प्रदेश सरकार को भेजा। इसमें उन्होंने शहर को जोन में विभाजित करते हुए जलजमाव से निजात दिलाने एवं वर्षा जल संचयन की योजना स्पष्ट की।

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नक्सली क्षेत्र में जलसंकट दूर

डा.हेमंत ने सोनभद्र जैसे नक्सली क्षेत्र में भी जल की ऐसी धारा बहाई कि आज तक वह लोगों की जुबां पर छाए हुए हैं। सोनभद्र के सतरा ब्लाक स्थित पनौरा गांव नक्सल प्रभावित है। सरकार ने यहां सीआरपीएफ के जवानों की तैनाती कर रखी है। वर्ष 2009 तक यहां टैंकर के जरिए पानी की सप्लाई होती थी। जल निगम और कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने यहां भूजल नहीं होने की बात कही तो तत्कालीन जिलाधिकारी ने जल संसाधन मंत्रालय से सहायता मांगी। जिस पर मंत्रालय ने डा.हेमंत को उक्त स्थिति से निपटने को कहा। डा.हेमंत ने अपनी टीम के साथ उक्त क्षेत्र का अध्ययन किया तो उन्हें कुछ जगहों पर पानी की गुंजाइश दिखाई दी। बो¨रग कराई गई तो पानी निकल गया। अब यहां डेरा डाले सीआरपीएफ जवानों के साथ आसपास के हजारों जनजातीय लोगों की पेयजल समस्या दूर हो गई है।

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किसानों को दी 'खुशहाली'

बुंदेलखंड के हमीरपुर इलाके में किसान सूखे से काफी तंग आ गए थे। वह केवल बारिश के समय ही खेती कर पाते थे। डा.हेमंत ने वर्ष 2010 में इस इलाके का सर्वेक्षण अपनी टीम के साथ किया और किसानों के लिए जन सहभागिता कार्यक्रम का आयोजन कर समस्याओं को जाना व पड़ौरी विकास खंड के दस गांवों के लोगों की कई टीम बनाई और इन दस गांवों में चार ट्यूबवेल, चार चेकडेम और मेड़बंदी भी कराई। ग्रामीणों को वर्षा जल के संचयन के तरीके भी बताए। आज इन गांवों के लोगों को खेती करने के लिए बारिश का इंतजार नहीं करना पड़ता। पानी मिलने से इनकी जीवन शैली बदल गई है और साथ ही खेती में उत्पादन भी काफी बढ़ गया है।

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खत्म की पानी की परेशानी

डा.हेमंत ने इलाहाबाद के शंकरगढ़, कोरांव, मेजा, मांडा जैसे क्षेत्रों में जल की संकट को दूर करने के लिए बेहतर प्रयास किया। उन्होंने इन इलाकों में बनने वाले चेक डैम, ट्यूबवेल आदि को भौगोलिक और वैज्ञानिक स्तर पर अध्ययन कर सही जगह पर स्थापित करवाया। जिस कारण आज यहां के लोग पानी के लिए उतना परेशान नहीं होते हैं, जितना पहले हुआ करते थे।

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सरकारों ने किया सम्मानित

डा.हेमंत द्वारा जल संकट को दूर करने के लिए किए जा रहे प्रयासों को केंद्र और प्रदेश सरकार ने भी खूब सराहा। 2009 में सोनभद्र के पनौरा इलाके में पानी की बौछार लाने पर केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय और प्रदेश सरकार की ओर से तत्कालीन डीजीपी ने उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया था।


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