'अगिन तिरिया' में दिखा नारी संसार
जासं, इलाहाबाद : उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र में रविवार को मंचित नाटक अगिन तिरिया में ऋग्वै
जासं, इलाहाबाद : उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र में रविवार को मंचित नाटक अगिन तिरिया में ऋग्वैदिक काल में महिलाओं की दशा का वर्णन किया गया। बिहार की भरत नाट्य कला केंद्र द्वारा आयोजित नाटक में गंधर्व कन्याओं की स्वतंत्रता एवं स्वच्छंदता का उल्लेख किया गया है।
ऋग्वैदिक काल में ब्राहृमण, पुरोहित वर्ग समाज में श्रेष्ठ माने जाते थे। सत्ता पक्ष भी पुरोहितों से पूछकर ही कोई काम किया करते थे। अग्नि भी पुरोहितों से मोल लेनी पड़ती थी। नाटक में कलाकारों ने यह दिखाया कि ऋग्वैदिक काल में छोटी जाति, शूद्र जाति को भूत भूतिन की संज्ञा दी जाती थी। इस काल में वेदमंत्र या पूजा आदि सामाजिक कार्यो में उच्च वर्गीय महिलाएं ही हिस्सा लेती थीं। यही कारण है कि गंधर्व कन्याओं की स्वतंत्रता देख दूसरे वर्ग की कन्याएं भी चाहती थीं कि उन्हें वह जीवन नसीब हो। सूआ और मात्या नामक युवतियों ने पुरोहितों से अग्नि छीनकर आमजन में वितरित कर दिया। ऐसा करके उन्होंने अंधकार की जगह रोशनी बिखेर दी। नाटक में तत्कालिक समाज के संघर्ष, पुरोहित सत्ता का विकेंद्रीकरण, नारी स्वतंत्रता को बड़े ही सुंदर ढंग से कलाकारों ने प्रस्तुत किया। नाटक का निर्देशन मिथिलेश राय ने किया। कलाकारों में रूबी कुमारी, आंचल, रामभजन, अविनाश भारती, विवेक कुमार, पारस कुमार, ज्योत्सना कुमारी, जूही कुमारी आदि शामिल रहे।