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संस्कृत को मिले राष्ट्रभाषा का दर्जा : न्यायमूर्ति मालवीय

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : देववाणी संस्कृत हमेशा उपेक्षित रही, उसके महत्व को कम करके आंका गया। यही

By Edited By: Published: Wed, 29 Oct 2014 07:09 PM (IST)Updated: Wed, 29 Oct 2014 07:09 PM (IST)

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : देववाणी संस्कृत हमेशा उपेक्षित रही, उसके महत्व को कम करके आंका गया। यही कारण है कि इसकी दशा दिनोंदिन बिगड़ती गई। सौदामिनी संस्कृत महाविद्यालय में बुधवार को त्रिदिवसीय ज्योतिष पर्व सूर्यषष्ठी समारोह में अखिल भारतीय संस्कृत सम्मेलन का शुभारंभ करते न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय ने ये बातें कहीं।

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कहा कि देश की स्वतंत्रता के बाद संस्कृत को राष्ट्रभाषा घोषित करने की पहल हुई। परंतु संस्कृत से अपरिचित लोगों के विरोध से वह संभव नहीं हुआ। अब समय आ गया है कि संस्कृत को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित किया जाए।

मुख्य अतिथि प्रो. कमलेशदत्त त्रिपाठी ने सूर्य के महत्व पर प्रकाश डाला। कहा कि सूर्य संपूर्ण चराचर की आत्मा है, यही कारण है कि सूर्य की उपासना वेदों व पुराणों में अनेक प्रकार से की गई है। आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. रामनरेश त्रिपाठी ने विषय प्रवर्तन करते हुए सूर्य के धार्मिक एवं वैज्ञानिक पहलु पर प्रकाश डाला। स्वागत आचार्य महेशचंद्र चट्टोपाध्याय व संचालन प्रो. भगवत शरण शुक्ल ने किया। द्वितीय सत्र के मुख्य अतिथि डॉ. शंभूनाथ त्रिपाठी ने सूर्यषष्ठी पर्व के वैज्ञानिक महत्व पर प्रकाश डाला। अध्यक्षता डॉ. केदारनाथ मिश्र ने किया। इस दौरान छात्रों के लिए वेद व्याकरण, साहित्य, श्लोकांत्याक्षरी व काव्यपाठ प्रतियोगिता हुई। संचालन डॉ. शंभूनाथ त्रिपाठी व आभार प्राचार्य नंदकुमार मिश्र ने ज्ञापित किया। कार्यक्रम में राधेरमण पांडेय, राजेंद्र प्रसाद पांडेय, अवध नारायण द्विवेदी, श्याम बिहारी गौतम, लालमणि मिश्र, राधेश्याम द्विवेदी मौजूद रहे।


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