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'बड़े घर की बेटी' ने सिखाया संस्कार

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : हर कहानी अपने पीछे एक संदेश और उद्देश्य छोड़ जाती है। महान कथाकार मुंशी प

By Edited By: Published: Mon, 20 Oct 2014 10:09 PM (IST)Updated: Mon, 20 Oct 2014 10:09 PM (IST)
'बड़े घर की बेटी' ने सिखाया संस्कार

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : हर कहानी अपने पीछे एक संदेश और उद्देश्य छोड़ जाती है। महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद्र को इसमें महारत हासिल थी। जहां उन्होंने गरीबों के दुख-दर्द को कथानक बनाया, वहीं उच्च वर्ग का सामाजिक परिवेश भी उनसे अछूता नहीं रहा है। छोटी सी कहानी में आर्थिक, पारिवारिक और संस्कारिक मूल्यों का उन्होंने जो समावेश स्थापित किया है वह हमारे देश व समाज की संस्कृति की एक प्रतिध्वनि अपने पीछे छोड़ जाती है। सोमवार को उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र(एनसीजेडसीसी) के प्रेक्षागृह में मुंशी प्रेमचंद्र द्वारा लिखित कहानी 'बड़े घर की बेटी' के मंचन में कुछ ऐसा ही दिखा। श्रीकंठ शिक्षित है। शिक्षा और गुण के कारण वह आनंदी जैसी पत्‍‌नी पाता है। आनंदी संस्कारवान व शिक्षित है और श्रीकंठ का छोटा भाई लाल बिहारी शुद्ध देहाती और अनपढ़। पीढि़यों व परिवार के विपरित प्रवाह को एक संस्कारित नारी कैसे एक धरातल पर लाती है, सबका एकीकरण करती है, यही इस कहानी का उद्देश्य है। संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से विवेक कुलश्रेष्ठ द्वारा प्रस्तुत इस नाटक में श्रीकंठ की भूमिका में शुभम व आनंदी की भूमिका में शिवानी का अभिनय लाजवाब रहा। इसके अलावा भूप सिंह व वेणी माधव सिंह के अभिनय को भी दर्शकों ने खूब सराहा।


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