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पढ़ाई करें यहा, शौच को जाएं कहा

By Edited By: Published: Tue, 02 Sep 2014 07:26 PM (IST)Updated: Tue, 02 Sep 2014 07:26 PM (IST)
पढ़ाई करें यहा, शौच को जाएं कहा

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक स्कूलों में शौचालय बनाने की वकालत करती है। इसके लिए भारी भरकम बजट भी खर्च किया गया। शौचालय बने भी, लेकिन कहीं दो दीवार खड़ी करके खानापूर्ति हो गई, कहीं सारा काम सिर्फ कागजों पर हो गया। शहर के 95 फीसद परिषदीय विद्यालय ऐसे हैं जहा शौच जाने के लिए 'लाडो' को इधर-उधर मुंह छिपाना पड़ता है। यहां ज्यादातर स्कूल बिना शौचालय के चल रहे हैं। यदि आकस्मिक शौच जाने की जरूरत पड़ जाए तो ढूंढ़ते रहिए। ऐसी जलालत रोज छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षक और शिक्षिकाएं भी झेलते हैं।

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बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने को सरकार मिडडे मील, स्कूली ड्रेस और मुफ्त किताबें दे रही है लेकिन बच्चे स्कूल पहुंचने के बाद किस हाल में रहेंगे इस पर किसी का ध्यान नहीं है। प्राथमिक विद्यालय 'करेली कन्या' को ही लें। किराए के भवन में वर्षो से चल रहे इस विद्यालय में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। विद्यालय तीन कमरे में चलता है, दो कमरों में अकबरपुर और नयापुरवा का आंगनबाड़ी केंद्र है। विद्यालय में 125 बच्चों का पंजीकरण है जिसमें 80 से 90 बच्चे प्रतिदिन आते हैं जबकि दोनो आंगनबाड़ी को मिलाकर 50-60 बच्चों की उपस्थिति रहती है। विद्यालय का भवन जर्जर है।

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विद्यालयों के ये हैं मानक

-हर विद्यालय में शौचालय व शुद्ध पेयजल की उपलब्धता अनिवार्य है।

-शौचालय स्वच्छ और पानीयुक्त हो, रोशनी-हवा का बंदोबस्त हो।

-शौचालयों में दरवाजे और कुंडी लगी होनी चाहिए।

-छात्र-छात्राओं के शौचालय अलग हों, प्रतिदिन सफाई होनी चाहिए।

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किराए का भवन होने से हम नया निर्माण नहीं करा सकते। शौचालय न होने के चलते हमें जो दिक्कत होती है उसे विभागीय अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं। आगे की कार्रवाई उन्हीं को करनी है।

-मो. मोइन, प्रधानाध्यापक प्राथमिक विद्यालय करेली कन्या।

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भवन की मरम्मत व शौचालयों की व्यवस्था की जिम्मेदारी प्रधानाध्यापकों को दी गई है, इसके लिए फंड भी जारी है, कहां क्या काम हुआ उसका मैं स्वयं स्थलीय निरीक्षण करूंगा।

-राजकुमार, बेसिक शिक्षा अधिकारी।

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छात्राओं की मुश्किल

विद्यालय में शौचालय न होने से हमें लघुशंका के लिए काफी दिक्कत होती है। इसके चलते अक्सर स्कूल आती ही नहीं।

-शबा

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मैंने विद्यालय में शौचालय का कभी उपयोग नहीं किया, क्योंकि वहां जाने मिलता ही नहीं। सबसे अधिक दिक्कत हमें शौच की होती है।

-आफरीन

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शौचालय न होने के चलते विद्यालय में मेरी उपस्थिति काफी कम रहती है। यहां पानी व सफाई की व्यवस्था भी ठीक नहीं है।

-मंतशा

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शौचालय न होने के चलते लघुशंका के लिए इधर-उधर भागना पड़ता है। इससे मेरी पढ़ाई प्रभावित होती है।

-नगरिसा


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